पल्टू बाबू रोड उपन्यास में प्रयुक्त गीत

15-12-2020

पल्टू बाबू रोड उपन्यास में प्रयुक्त गीत

डॉ. पवनेश ठकुराठी (अंक: 171, दिसंबर द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

जन्मशती विशेष: 

कथाकार फणीश्वर नाथ 'रेणु' का जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के अररिया ज़िले में फारबिसगंज के पास औराही हिंगना गाँव में हुआ था। उस समय यह पूर्णिया ज़िले में था। उनकी शिक्षा भारत और नेपाल में हुई। प्रारंभिक शिक्षा फारबिसगंज तथा अररिया में पूरी करने के बाद रेणु ने हाईस्कूल की परीक्षा नेपाल के विराटनगर आदर्श विद्यालय से उत्तीर्ण की। इन्होंने इन्टरमीडिएट काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1942 में उत्तीर्ण किया। इसके बाद वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। 

सन् 1950 में रेणु जी ने नेपाली क्रांतिकारी आन्दोलन में भी हिस्सा लिया, जिसके परिणामस्वरूप नेपाल में जनतंत्र की स्थापना हुई। आपने पटना विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के साथ छात्र संघर्ष समिति में सक्रिय रूप से भाग लिया और जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति में अहम भूमिका निभाई। रेणु जी ने हिन्दी में आंचलिक कथा साहित्य की नींव रखी। 

फणीश्वरनाथ रेणु का पहला उपन्यास 'मैला आँचल' था, जो 1954 में प्रकाशित हुआ। इस आंचलिक उपन्यास ने रेणु जी को हिंदी साहित्य संसार में अपार ख्याति दिलाई। मैला आँचल के बाद रेणु जी के परती परिकथा, जुलूस, दीर्घतपा, कितने चौराहे, पल्टू बाबू रोड आदि उपन्यास प्रकाशित हुए। अपने प्रथम उपन्यास 'मैला आँचल' के लिये रेणु जी को पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

फणीश्वरनाथ रेणु ने कहानी लेखन की शुरुआत 1936 ई० के आसपास की। उस समय इनकी कुछ कहानियाँ प्रकाशित भी हुई थीं, किंतु वे किशोर रेणु की अपरिपक्व कहानियाँ थीं। 1942 के आंदोलन में गिरफ़्तार होने के बाद जब वे 1944 में जेल से मुक्त हुए, तब घर लौटने पर रेणु जी ने 'बटबाबा' नामक पहली परिपक्व कहानी लिखी। 'बटबाबा' 'साप्ताहिक विश्वमित्र' के 27 अगस्त, 1944 के अंक में प्रकाशित हुई। वर्ष 1972 में रेणु जी ने अपनी अंतिम कहानी 'भित्तिचित्र की मयूरी' लिखी। 

उनकी अब तक उपलब्ध कुल कहानियों की संख्या 63 है। 'रेणु' को जितनी प्रसिद्धि उपन्यासों से मिली, उतनी ही प्रसिद्धि उनको कहानियों से भी मिली। 'ठुमरी', 'अग्निखोर', 'आदिम रात्रि की महक', 'एक श्रावणी दोपहरी की धूप', 'अच्छे आदमी', 'सम्पूर्ण कहानियाँ', 'मेरी प्रिय कहानियाँ' आदि उनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं।

रेणु जी को प्रेमचंद की सामाजिक यथार्थवादी परंपरा को आगे बढ़ाने वाला कथाकार कहा जाता है। इसीलिए इन्हें आज़ादी के बाद के प्रेमचंद की संज्ञा भी दी जाती है। रेणु जी के उपन्यास हों या फिर कहानियाँ सब में बिहार की आंचलिक बोलियों का स्वाभाविक समावेश हुआ है, वैसा शायद ही किसी अन्य कथाकार के कथा साहित्य में हुआ हो। 

'पल्टू बाबू रोड' अमर कथाशिल्पी फनीश्वरनाथ रेणु का लघु उपन्यास है। यह उपन्यास पटना से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'ज्योत्स्ना' के दिसंबर, 1959 से दिसंबर, 1960 के अंकों में धारावाहिक रूप से छपा था। यह उपन्यास रेणु के निधन के बाद 1979 में सर्वप्रथम पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास में रेणु ने अपने गाँव-इलाक़े को छोड़कर बैरगाछी क़स्बे को कथाभूमि बनाया है और पल्टू बाबू, लट्टू बाबू, बिजली, घंटा, फेला, मुरली मनोहर मेहता, छोगमल आदि जैसे पात्रों के माध्यम से उच्चवर्गीय सामाजिक-राजनीतिक विसंगतियों का चित्रण किया है। 

पल्टू बाबू रोड फणीश्वरनाथ रेणु का उच्च वर्ग पर केंद्रित लघु उपन्यास है। यही कारण है कि इस उपन्यास में उनके प्रसिद्ध आंचलिक उपन्यासों की तरह पर्याप्त गीत प्रयुक्त नहीं हुए हैं। इस उपन्यास के कुछ ही स्थलों पर गीतों का चित्रण हुआ है। 

इस उपन्यास की बाल चरित्र रमा, छबि और कना हारमोनियम पर 'बंदेमातरम' गीत का रियाज़ करती चित्रित हुई हैं-

"रमा-छबि-कना एक साथ मिलकर बंदेमातरम का रियाज कर रही थीं-हारमोनियम पर। 

- सुखदाम्.... वरदाम्....मातरम् !" 1

इस उपन्यास का किशोर चरित्र परितोष उर्फ घंटा बहन बिजली को चिढ़ाने के लिए लोकभाषा के एक कीर्तन गीत का अंश गाता चित्रित हुआ है–

"भालो कोरे बेधेंछी, 
बंधुआ के प्रेमेर बांधने बेधेंछो। 
(अर्थात बंदी को अच्छी तरह प्रेम के बंधन में बाँधा है।)"2

पल्टू बाबू रोड में उपन्यास के प्रमुख चरित्र पल्टू बाबू के माध्यम से छबि के ऊर्ध-गगने बाजे मादल गीत गाने का उल्लेख हुआ है–

"ऊर्ध-गगने बाजे मादल
निम्ने-उतला-धरणी तल
अरूण प्रांतेर तरूण दल
चल रे- चल रे- चल  !"3

जब छबि इस गीत को ज़िला समाजवादी किसान सभी बैरगाछी की बैठक में गाती है, तो लोग उमंग से भर उठते हैं। 

इस उपन्यास का निम्नवर्गीय चरित्र मेवालाल उर्फ सनतीसा ज़िला कांग्रेस कमेटी के मंत्री मुरली मनोहर मेहता को देखकर अभद्र भाषा में लोकगीत गाता चित्रित हुआ है–

"अरे, की करैछी काचुर-माचुर 
किये बोलेछी टाटी 
अरे मुनहर-घर में बेंग बोलेछै 
मूस कोड़ैछै मिटी, मुसवा डंड पेले रे
मुसवा डंड पेले रे
(दिन दहाड़े मुसवा साला) डंड पेले रे... 
अजी कोटलिया में जाकर बदल बदल जाइए- जी-ई.. ।"4

मंत्री मेहता के डाँटने पर वह लोककथा की तर्ज़ पर बेसुरे सुरों में गीत गाने लगता है– "हैं, तब इसके बाद जाकर के चननिया ने क्या किया है, जाकर के सो देखिए कि जाकर के सोलहों सिंगार करके पोर-पोर में गहना गूंथ लिया है, जाकर के सो मारे मोहनमाला.. ।"5 

निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु के 'पल्टू बाबू रोड' उपन्यास में गीत अल्प मात्रा में प्रयुक्त हुए हैं। उपन्यास में प्रयुक्त इन गीतों के माध्यम से बिहार के बैरगाछी अंचल की संस्कृति व तत्कालीन राजनीति का चित्रण हुआ है। 'बंदेमातरम' व 'ऊर्ध-गगने बाजे मादल' गीत देशभक्ति व राजनीतिक चेतना के परिचायक हैं, जबकि 'अरे कि करछी काचुर-माचुर' गीत विकृत मानसिकता को दर्शाता है। 

संदर्भ:

1. पल्टू बाबू रोड, फणीश्वरनाथ रेणु, फणीश्वरनाथ रेणु समाज सेवा संस्थान, अररिया, बिहार, प्रथम संस्करण 2013, पृ० 33
2. वही, पृ० 44
3. वही, पृ० 82
4. वही, पृ० 84
5. वही, पृ० 85

- डॉ. पवनेश ठकुराठी, 
अल्मोड़ा, उत्तराखंड - 263601
मो० 9528557051
 

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