पलायन पीड़ा प्रेरणा . . .

01-05-2021

पलायन पीड़ा प्रेरणा . . .

बिक्रम सिंह (अंक: 180, मई प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

 

चर्चित पुस्तक: पलायन पीड़ा प्रेरणा
लेखक: मयंक पाण्डेय
प्रकाशक: प्रलेक प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, मुंबई
पृष्ठ संख्या: 295
मूल्य: 250 रु.
 

"पूरब की दुनिया की सबसे बड़ी ज़रूरत धर्म से जुड़ी हुई नहीं है। उनके पास धर्म की कमी नहीं है लेकिन भारत की लाखों पीड़ित जनता अपने सूखे गले से जिस चीज़ की बार-बार गुहार लगा रही है वो है रोटी वो हमसे रोटी माँगते हैं, लेकिन हम उन्हें पत्थर पकड़ा देते हैं। भूख से मरती जनता को धर्म का उपदेश देना उसका अपमान है।"

— स्वामी विवेकानंद

आज मयंक पांडे सर (IRS Commissioner) की किताब "पलायन पीड़ा प्रेरणा" पढ़कर ख़त्म की है। किताब में करोना काल की क़रीब 50 सच्ची घटनाएँ हैं। सच कहूँ तो इस किताब को न पढ़ता तो लगता कि जैसे कुछ पढ़ा ही नहीं है । इस किताब में हर कहानी इंसान को झकझोर के रख देगी। सच कहूँ तो किताब पढ़ने के बाद यही महसूस किया कि जीवन में फिर ऐसी घटनाएँ कभी ना हो और किसी को ऐसी किताब लिखने के लिए विवश ना होना पड़े। क्योंकि ऐसी घटनाओं पर लिखते हुए लेखक भी कई बार रोया होगा। देश में मज़दूरों की क्या हालत है यह किसी से छुपा नहीं है। किसी ने सही कहा है, "हमने भारत को एक राष्ट्र के रूप में विकसित करने का प्रयास तो अवश्य किया है लेकिन भयाक्रांत होकर कहीं-कहीं अपने आप को संकुचित कर लिया है। यथा श्रमिकों की स्थिति को ही ले लें तो पता चलता है कि श्रमिक के बदौलत ही अभिजात्य वर्गों की पूँजी बढ़ती है लेकिन श्रमिकों के समानांतर विकास को सदा से हतोत्साहित किया गया है और आज भी स्थिति ऐसी ही है।" कोविड-19 आने के बाद लॉकडाउन के पहले चरण में ही हम सब ने देखा कि मज़दूरों की हालत क्या है? उनके पास इतनी भी पूँजी नहीं थी कि वह 2 महीने भी बैठ कर खा सकें। इसका मुख्य कारण है मज़दूरों के श्रम का जो उन्हें पैसा मिलता है; बहुत मुश्किल से वह महीने का गुज़ारा कर पाते हैं। बड़ी से बड़ी कंपनियाँ भी मज़दूरों को 7000 से 8000 की मासिक तनख़्वाह देती हैं। तनख़्वाह में किराए में रहना, तीन वक़्त खाना और बच्चे पढ़ाना। इस महँगाई में करना कितना मुश्किल है। यह सब आप सब भी भली-भाँति जानते हैं। आज की तारीख़ में 150 से ज़्यादा श्रम क़ानून केंद्र एवं राज्यों द्वारा बनाए गए हैं। उसके बाद भी मज़दूरों की दुर्दशा में कोई सुधार नहीं आया है।

यूँ तो लॉकडाउन में हर एक व्यक्ति परेशान हुआ है पर मज़दूरों की जो दुर्दशा हुई है यह हम सब ने देखी है।

कोरोना संक्रमण में सरकार द्वारा किए कार्य की समीक्षा करने से पहले एक बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि कोई भी देश व्यवस्था या प्रशासन ऐसी किसी आपदा के लिए न तो पहले से तैयार था और न ही उसके पास इतने पर्याप्त संसाधन थे। समय की माँग और परिस्थितियों के अनुसार धीरे-धीरे निर्णय लिए गए और उन पर कार्रवाई की गई।

इस किताब की एक कहानी है . . .
 
"कंधे पर पुत्र की लाश लिए आज का हरिश्चंद्र"

 

16 मई 2020 को रोज़मर्रा की तरह ख़बरें कवर करने निकले मुरादाबाद के स्थानीय पत्रकार फ़रीद ने देखा कि 32-35 साल का एक व्यक्ति कंधे पर पुत्र को सुलाने के पोज़ में लेकर पैदल बढ़ा जा रहा है। उस व्यक्ति के चेहरे के हाव-भाव बदहवास थे और वह बड़ी तेज़ी से जा रहा था जैसे मानव को छुपा कर भाग रहा हो। फरीद शमी ने जब उसे हाथ देकर रोका तो वह शख़्स हाथ जोड़कर बोला बाबूजी हमारी फोटो मत लो। उस व्यक्ति की इस अपील पर फरीद शमी ने कैमरा हटा कर उससे बात की तो ऐसा कारण सामने आया कि जिसे सुनकर पत्रकार फरीद के साथ-साथ वहाँ मौजूद हर शख़्स की आँखें नम हो गईं। कभी कई पत्रकारों को रिपोर्टिंग के समय ऐसे दृश्य दिखते हैं जिसे न सिर्फ़ उनकी, बल्कि पूरे समाज की आत्मा सिहर उठती है। पीलीभीत के बिसलपुर का रहने वाला व्यक्ति असल में कंधे पर अपने मृत पुत्र की लाश ले जा रहा था। बच्चे ने बीमार होने के बाद अपना दम तोड़ दिया था। क्योंकि बच्चे का शव का पोस्टमार्टम होगा, पोस्टमार्टम के बाद उन्हें 14 दिनों के लिए क्वॉरेंटाइन किया जाएगा; यह जानकर कम पढ़े-लिखे इस मज़दूर के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसके सामने उसके नन्हे से बेटे की लाश के साथ चीड़-फाड़ होने का दृश्य घूमने लगा। दरअसल यह मजबूर पिता कई दिन पहले अंबाला से अपने 4 साल के बीमार पुत्र को साथ लेकर अपने गृह जनपद पीलीभीत के लिए निकला था; गुरुवार शाम 15 मई को उसके बीमार बच्चे ने दम तोड़ दिया था। 

कई किलोमीटर पैदल चलने के बाद आख़िर में कुछ लोगों की मदद से वह अपने घर पीलीभीत पहुँचा।
 
"दिव्यांग बच्चे के लिए चोरी"
 

उत्तर प्रदेश के बरेली का रहने वाला मोहब्बत इकबाल राजस्थान में मज़दूरी करके अपना जीवनयापन कर रहा था। करोना महामारी में घोषित लॉकडाउन में इकबाल भी अन्य मज़दूरों की भाँति पैदल ही निकल पड़ा था अपने गृह जनपद जाने के लिए। इकबाल के साथ उसका पुत्र भी था जो दिव्यांग था; यह बच्चा चल नहीं सकता था तो इस बच्चे को गोद में उठा मोहब्बत इकबाल कई दिनों से चल रहा था। वो रात को किसी ना किसी गाँव में विश्राम भी करता। क्योंकि वह बहुत थक जाता था और उसे लग रहा था कि वह आगे की यात्रा इस तरह नहीं कर पाएगा। सो उसने घर के बरामदे से साइकिल चुराई। गाँव की सीमा पर ही साहिब सिंह का घर था। अगली सुबह जब साहिब सिंह उठे तो उन्हें बरामदे में रखी अपनी साइकिल ग़ायब मिली। उन्होंने इस बारे में आस-पड़ोस के लोगों से पूछताछ की। साहिब सिंह को लगा शायद कोई जानने वाला किसी काम से लेकर गया होगा। सारा दिन खोजने के बाद साहिब सिंह को विश्वास हो गया कि उनकी साइकिल चोरी हो गई है। वह आगबबूला होकर चोर को ख़ूब गालियाँ देने लगे और जमकर कोसने लगे और इसकी सूचना उसने पुलिस में भी दे डाली। मगर अगले दिन झाड़ू लगाते वक़्त साहिब सिंह को एक काग़ज़ का टुकड़ा मिला। इस काग़ज़ के टुकड़े में एक व्यक्ति के ज़मीर मरने और स्वाभिमान के ज़िंदा होने का प्रमाण था। इस छोटे से टुकड़े में मोहब्बत इकबाल ने लिखा था।

"नमस्ते जी ,मैं आपकी साइकिल लेकर जा रहा हूँ, हो सके तो मुझे माफ़ कर देना। क्योंकि मेरे पास मैं साधन नहीं है और मेरा एक बच्चा है। उसके लिए मुझे ऐसा करना पड़ा क्योंकि वह विकलांग है, चल नहीं सकता हमें बरेली तक जाना है।

आपका क़ुसूरवार,
मोहब्बत इकबाल

ऐसी करीब 50 कहानियाँ किताब में संकलित हैं। अगर आप 50 कहानियाँ पढ़ना चाहते हैं तो आज ही किताब मँगा सकते हैं।

करोना काल में कई लोगों ने मज़दूरों के मदद के लिए हाथ भी बढ़ाया।

  • पंजाब लुधियाना ज़िले के रहने वाली अमनप्रीत पासी भारतीय राजस्व सेवा (IRS)। अपनी सर्विस के दौरान बड़ी-बड़ी कंपनियों के डेबिट क्रेडिट को खंगालने वाली अमनप्रीत ने ग़रीब और बेसहारा महिलाओं की समस्या कार्ड निस्तारण करने का बीड़ा उठा लिया। ग़रीब परिवार की ज़्यादातर महिलाएँ और लड़कियाँ समिति पैड के विकल्प के तौर पर पुराने कपड़ों का इस्तेमाल कर रही थीं। कई महिलाओं में इसके बारे में जागरूकता की भी कमी थी। अमनप्रीत ने देखा कि पलायन कर रहे मज़दूरों के लिए खाना-पीना, मास्क, राशन आदि की व्यवस्था तो सरकार या कुछ एनजीओ के द्वारा की जा रही है परंतु उनकी एक आवश्यकता ऐसी भी है जिस ओर किसी को ध्यान नहीं जा रहा है। फिर पैडवुमन बनी भारतीय राजस्व सेवा की अमनप्रीत पासी।

  • विश्वप्रसिद्ध शेफ़, लेखक और फ़िल्मकार का विकास खन्ना ने अमरीका में रहते हुए भारत में कोरोना महामारी के दौरान 125 शहरों में 5 करोड़ खाने के पैकेट्स, 5 लाख चप्पलें, 30 लाख सेनेटरी पैड इत्यादि वितरित कर विकास खन्ना ने विश्व रिकार्ड बनाया। 

  • सिविल सर्विस में कार्यरत कई लोगों और फ़िल्मी सितारों ने भी देश के कई लोगों की मदद की। 

पूरी कहानियाँ पढ़ने के लिए आप इस किताब को अमेज़ॉन से ख़रीद सकते हैं।

कोरोना एक बार दोबारा फिर से आ गया है, पिछली बार से कहीं ज़्यादा भयंकर रूप में। इस बार बहुत लोगों की जान भी जा रही ह इसी तरह अगर लोग मरते रहेंगे तो समझ नहीं आ रहा है कि पृथ्वी में कितने लोग ज़िंदा रह जाएँगे। आप सब से यही प्रार्थना करूँगा सब सुरक्षित रहें, सावधान रहें और एक दूसरे की मदद करते रहें।

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