पहली बरसात

29-05-2017

इस गरमी की पहली बरसात में
तुम्हें देखा गर्म भाप
बनकर उड़ते हुए
एक उमस थी
जो तिरोहित हो रही थी
तुम माटी की सौंधी सुगंध
बनकर उतर रही थी
घटाओं से
रिमझिम रिमझिम
बारिश की फुहारें
उँगलियों से खेलते हुए
उतर रही थी धरती पर
बूँदें चेहरे को छूकर बना रहीं थीं
समुद्र के मोती
धीरे-धीरे हिलते हुए पेड़ों की
शाखायें बना रहीं थी सरगम
कुछ धुआँ-धुआँ सा
उठ रहा था वातावरण में
कुछ धुआँ-धुआँ सा
उठ रहा था मन में
मेघों का गर्जन,
बारिश की बड़ी-बड़ी बूँदें,
उतर रही है धरती पर
कुछ खामोशियों को तोड़ते हुए
इस गरमी की पहली बरसात में
तुम्हे देखा गर्म भाप
बनकर उड़ते हुए

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