पाती (कविता)
कवितालिख कर प्रेम पाती
अपने प्रेम से
रिक्त दिल पर
चला गया अपनी
राह पथिक।
भूल थी मेरी
जो प्रेम समझी
उसके पथ का तो,
ये बस, क्षणिक ठहराव था।
चलना पथिक का
स्वभाव ठहरा
बहता पानी
और
पथिक
रुकते नहीं
पीछे छुटी तबाही
कभी देखते नहीं।
पानी पर लिखता तो
चिह्न शेष ना रहते
मिट जाता सब स्वयं
पर ये पाती
कोरे काग़ज़ पर
लिखी थी उसने
नेह की क़लम से,
मिटाए से ना मिटे
नेह के अमिट चिह्न।
दिल की सब बातें
कह नहीं पाती
ये तेरी अधूरी
प्रेम की पाती!