पागल लड़की

15-07-2021

पागल लड़की

मंजुल सिंह (अंक: 185, जुलाई द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

तुम चीज़ों को
ढूँढ़ने के लिए रोशनी का
इस्तेमाल करती हो
और वो गाँव की पागल लड़की
चिट्ठी का
वो लिपती है
नीले आसमान को
और बिछा लेती है
धूप को ज़मीन पर
 
वो अक़्सर चाँद को सज़ा देती है
रात भर जागने की
वो बनावटी मुस्कान लिए,
नाचती है
जब धानुक बजा रहे होते है मृदंग
 
वो निकालती है कुतिया का दूध
इतनी शांति से की बुद्ध ना जग जाएँ
और पिला देती है
नींद में सोई मछलियों को
उसने पिंजरे में क़ैद कर रखे हैं
कई शेर जो चूहों से डरते हैं
 
वो समझती है
नदी को किसी वेश्या के आँसू
इसलिए वह बिना बालों के धुले
अपनी बकरी को डालती है
मांस के टुकड़े
और मेरी कविता सुनाती है
जिसमें मैंने औरत की देह से
उसके हाथ काट कर
अलग नहीं किये थे!

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