न्याय-अन्याय - 09

14-07-2014

न्याय-अन्याय - 09

मानोशी चैटर्जी

9.

 "आज अरुण की फिर तबीयत ख़राब है। पेट में दर्द है फिर। डाक्टर समझ नहीं पा रहे हैं क्या हुआ है। उनके ऊपर ख़ूब प्रेशर हो जाता है जब उनके बच्चे बीमार होते हैं। मधूलिका या अरुणिमा को भी ज़रा सा कुछ होता है तो बेचैन हो जाते हैं। कहीं मुझमें आसरा ढूँढते हैं। कह दूँ कि हाँ सब ठीक हो जायेगा तो जैसे आश्वस्त हो जाते हैं कि सब ठीक हो जायेगा। मैं समझती हूँ कि ये कभी मेरे पास सबको छोड़ कर नहीं आ पायेंगे। उनके बच्चे उनकी जान हैं, और होना भी तो चाहिये। अरुणिमा ने ऐसी हरकत की कि मुझे अब डर हो गया है। बच्चे ठीक रहें, मेरा क्या है, हम दोनों की तो उम्र हो चुकी है, पर यह अरुण क्यों बीमार रहने लगा है, उसके कभी पेट तो कभी पीठ में दर्द होता है, सब ठीक रहे बस यही चाहती हूँ। कल ये बहुत उदास थे।" अरुण ठीक तो हो जायेगा न?" मैंने उन्हें कहा था, "हाँ बाबा, कुछ नहीं हुआ है उसे। सब ठीक है। मुझ पर विश्वास है न? बस..." वो एक क्षण को आश्वस्त हो गये थे। पर फिर चिंता की रेखायें घिर आईं थी उनके चेहरे पर। मगर मैंने उनका सर प्यार से अपने सीने पर रख लिया था। फिर हमारी दुनिया एक हो गई थी, और हम एक दूसरे के।"

 अरुण की बीमारी के दिन याद हैं आरती को। पेट दर्द की शिकायत से बात शुरू हुई थी। थकावट और पैर में सूजन की वज़ह जानने के लिये डाक्टर ने जब टेस्ट किये थे तो किडनी की ख़राबी की आशंका बताई थी उनहोंने। उसे भी तो मौका मिल जाता था बच्चों की बीमारी को लेकर अपने पति को ताने देने का कि वो बच्चों को खो देंगे एक दिन अपने अवैध रिश्ते के चक्कर में और इस तरह अपने पति के करीब भी आना चाहती थी वो। अरुण की बीमारी को लेकर जाने कितने अस्पताल के चक्कर काटने पड़े थे उन दोनों को। उनकी उम्मीद थी कि इस तरह शायद उनका संबध ठीक ही हो जाये। भगवान जो कुछ करता है अच्छे के लिये ही। बच्चे की बीमारी की वज़ह से अगर सब ठीक हो जाये तो क्यों नहीं। उन्हें याद है जब अरुण को डायलीसिस के लिये डाला गया था। और डाक्टर ने कहा था कि अब सिर्फ़ किडनी ट्रांसप्लांट ही अरुण को जीवन दे सकती है। कोई २ महीने बाद ट्रांसप्लांट हुआ था उसकी किडनी का और वो मौत के मुँह से बच कर आया था। अरुण की बीमारी ने उसके पापा की उम्र १० साल जैसे और बढा दी थी। वो ख़ुद भी निढाल हो गई थीं।

"किडनी का मैच मिल जाये भगवान, मैंने उन्हें आश्वस्त किया है कि अरुण ठीक हो जायेगा, मेरी लाज रख लेना भगवान। परिवार में किसी का मैच क्यों नहीं मिल पाया..."

"आज अस्पताल से आये मुझे एक महीना हो गया। सब ठीक लग रहा है। डाक्टर ने खाना भी सामान्य ही खाने को कहा है। मेरे पति मेरी तरफ़ अब देखते नहीं, उनकी मर्ज़ी के खिलाफ़ यह किया मैंने। पर फिर भी साथ हैं हम एक ही छत के नीचे। अरुण के पापा भी तो नहीं आ पाते हैं इस घर में। वरना मेरा ख़याल रखते ज़रूर। मेरे किडनी देने की बात हमने छुपाई हुई है। मधूलिका की माँ को नहीं पता है। बस अरुण और वे ही जानते हैं कि किडनी की डोनर मैं हूँ। अरुण का शरीर मेरी किडनी को स्वीकार ले बस...। मैं आज काफ़ी अच्छा महसूस कर रही हूँ। थकावट भी कम है और आज उनसे डेढ़ घंटे फ़ोन पर बात हुई। अरुणिमा के लिये रिश्ता भी आया है कोई, बता रहे थे वो। अब अरुणिमा और मधूलिका की शादी हो जायेगी तो फिर हम भी शायद एक हो सकें...।"

"आज मधूलिका की शादी को भी दो महीने हो गये हैं। अरुणिमा की शादी के बाद वो एक बार भी माइके नहीं आई है। अरुण की प्रेमिका शुरू से ही पसंद नहीं थी मुझे। आज भी शायद अरुण ख़ुश नहीं उसके साथ। आज उन्होंने कहा, ’बच्चों की शादी ही तो बस ज़रूरी नहीं है न रानी। उनकी मम्मी को घर भी तो देना होगा। मैं जानता हूँ न, वो नहीं रह सकेंगी कहीं और... न माइके, न ससुराल...सबके बीच अपमान सह कर...तुम समझा करो...बताओ क्या तुम्हें ही अच्छा लगेगा ऐसे, मैं अगर ज़िम्मेदारी न निभाऊँ तो?’

"मैंने सोच लिया है अब नहीं मिलूँगी उनसे कभी...प्रेम त्याग भी तो है...’साहित्यिक प्रेम’...मज़ाक उड़ाती रही मैं ’त्याग’ को यही कह कर हमेशा, पर अब यही करना है...आप ख़ुश रहें मेरे शोना...मैं तो हूँ ही एक ज़िंदगी में..."

आरती कई बार पढ़ चुकी है सुदर्शना के लिखे हुये शब्द उफ़! यह अहसान तो नहीं लेना चाहेंगी वह कभी भी किसी से। बच्चे उसके हैं। माँ का गर्व उसका है...कोई और नहीं ले सकता यह हक़ कि जीवन दें उसके बच्चों को। और त्याग...किसका...उस औरत का...इसे समझें ठीक से कि उसके पति की बेवफ़ाई को...? और बेवफ़ाई किसके साथ? उसके साथ कि सुदर्शना के साथ? मगर सुदर्शना आज भी अपने पति के साथ है...तो उसका चरित्र...? मगर जीवन दिया है उसने उसके अरुण को...बिना स्वार्थ ...क्या सच ही बिना स्वार्थ या फिर किसी आशा के साथ...? यह स्वार्थ कि एक सही मायनों में शादीशुदा जीवन जीये, शायद आगे चल कर माँ भी बन सके... आदमी को उसके बच्चों से प्यार दिखा कर उसे अपने बस में करने का ब्रह्मास्त्र...!

मगर...जीवन दिया है उस औरत ने अरुण को, उसके अरुण को...ऋणी हैं उसकी वह...

"मधूलिका...एक बार एक चिट्ठी लिख देना उसे...तू और अरुण मिल आओ एक बार...छोटी मम्मी से...छोटी मम्मी ..."

उफ़! नहीं...! यह नहीं होने देंगी वे....कभी नहीं ....जीवन के बदले जीवन ठीक है...मगर...उनके पति की विवाहिता और उनके बच्चों की माँ होने का सम्मान बस उसका है...बस उसका...हमेशा...।

– समाप्त

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