मेरा जो चरित्र है,
तुम उसी के चित्र हो;
निःसंदेह पवित्र हो,
तुम मेरे मित्र हो।
तुम्हीं हो शक्ति-साधना,
विश्वास की उपासना;
जीवन की सुगंध हो,
श्रेष्ठतम तुम इत्र हो;
निःसंदेह पवित्र हो,
तुम मेरे मित्र हो।
दर्शन हो मानों पर्व हो,
तुम्हीं तो मेरे गर्व हो;
हस्त मिले ही रहेंगे,
चाहे पथ विचित्र हो;
निःसंदेह पवित्र हो,
तुम मेरे मित्र हो।