निरक्षर मानव
रचना गौड़ 'भारती'घने जंगल में एक पेड़ के ओखल में कठफोड़वे का घर था। जंगल घना था, अतः लकड़ी चुराने वाले दल ने पेड़ों पर टिड्डी दल के समान आक्रमण कर दिया। खुदगर्ज लकड़हारे हाथों में कुल्हाड़ियाँ लिए यमदूत के समान आगे बढ़ रहे थे। जिसपर प्रकार कठफोड़वा पेड़ पर आश्रित था उसी प्रकार स्वस्थ वायु, भोजन व औषधी के लिए इंसान भी इन्हीं पेडों पर आश्रित थे।
ये सोचकर कठफोड़वा बेचैन हो उठा। पेड़ पर कुल्हाड़ी का पहला प्रहार, पेड़ व कठफोड़वे दोनों को अन्दर तक हिला गया। भय व आतंक के मारे दोनों काँपने लगे। पेड़ तो स्थिर खड़ा था कहीं भाग नहीं सकता था बहरहाल कठफोड़वा चाहता तो उड़ जाता। मगर वह उड़ा नहीं। वह गैरतमंद था। तुरंत अपने व पेड़ का रास्ता निकाल लिया उसकी निगाह अपनी चोंच पर पड़ी। अपनी सारी हिम्मत बटोर कर टां टां कर दुश्मन पर जा टूटा। चोंच सीधे दुश्मन की आँख पर लगी और एक-एक कर सब भाग गए। पेड़ चुपचाप सारी गतिविधी देख रहा था आनन्दित हो अपनी पत्तियाँ व शाखाएँ आंदोलित करने लगा।
पेड़ से निकली ध्वनि कठफोड़वे को ऐसी लगी जैसे वह उसे धन्यवाद दे रहा है और कठफोड़वा गद्गद् हो उठा। उन बुद्धिहीन लोगों से जो पेड़ काट रहे थे तो वृक्ष ही बुद्धिमान निकला। दुख हमें इस बात का था कि परोपकारिता और शिष्टता का जो पाठ वृक्ष व कठफोड़वे ने पढ़ा इंसानियत का मानव आखिर उससे क्यों निरक्षर रहा।