नज़ारे

अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श’ (अंक: 183, जून द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

देखते ही ख़ूबसूरत नज़ारे . . .
एक चित्रकार उतार लेता है
नज़ारों को कैनवास पर,
एक फोटोग्राफर क़ैद कर लेता है
उन नज़ारों को कैमरे में,
और
एक कवि अपनी कविता में।
 
और मैं . . .
देखता रह जाता हूँ
उन नज़ारों को,
उन में खोए हुए
दिल में उतारता चला जाता हूँ,
उनमें जीता चला जाता हूँ।

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