नया सफ़र
डॉ. वेदित कुमार धीरजअब चलो एक नये सफ़र पर चलें
मन ही मंज़िल बने
तन ही राही रहे
साथ साँसों का हो
ना कोई और साथ हो
आत्म विश्वास हो
उम्मीद ख़ुद से रहे
योग ही साधना का विकल्प रहे
संतोष की नाव पर हम सवारी करें
मोल पैसे का तब ख़त्म हो जाएगा
आत्म से मुलाक़ात हो जायेगी
वो बनेगा हमसफ़र जब तेरा
बुद्ध तू और मन विवेकानंद हो जायेगा
मोह–पास सारे बिखर जायेंगे
सर्व विषमता तब समभाव हो जायेंगे
आत्म आनंद आनंदित हो जायेगा
मन को मंज़िल मिल जायेगी।
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