नव वर्ष आ रहा है
धर्मेन्द्र सिंह ’धर्मा’भूली बिसरी यादों को,
अपनी झोली में समेटकर।
ले चला चल तू,
सभी दुःखों को हृदय से त्याग दे,
क्योंकि?
नव वर्ष आ रहा है. . .
नव गीत हों, नव राग हों,
और नव संसार हो।
पुनः लोगों के हृदय में,
ख़ुशियों की भरमार हो।
द्वेष-भाव सब दूर कर दे,
क्योंकि?
नव वर्ष आ रहा है. . .
हृदय से लगाकर,
एक दूजे को,
बन जाओ तुम नि:स्वार्थी,
प्रेम की गंगा बहती है, यहाँ पर . . .
कभी क्रोध को त्याग कर देख।
निराशा को त्याग कर,
आशा में विश्वास कर अब. . .
क्योंकि ?
नव वर्ष आ रहा है. . .