नव वर्ष का आगमन

15-02-2021

नव वर्ष का आगमन

डॉ. आशा मिश्रा ‘मुक्ता’  (अंक: 175, फरवरी द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

नव वर्ष का आगमन 
देखा है मैंने उन बूढ़ी आँखों में
जो बैठा है दालान में पड़ी चारपाई पर 
निहारता परिवार को 
दीवार पर टँगे
ताम्बे के फ़्रेम में 
 
नव वर्ष का आगमन देखा है मैंने 
महानगर के चौराहे पर
उन नन्ही सी आँखों में 
मैले कपड़ों से पोंछते 
चमचमाती गाड़ियों को 
कोशिश करता मापने की 
बेबसी और उम्मीद 
के बीच के अंतर को ।
 
नव वर्ष का आगमन देखा है मैंने 
दहलीज़ पर खड़ी दुलहन की नज़रों में 
इंतज़ार है जिसे उसका 
जो गया वर्षों पहले 
कमाने मुट्ठी भर दाने 
लौटेगा वह 
और विश्वास दिलाएगा 
कि बस एक अफ़वाह थी 
कि बसा लिया उसने 
नया घर
 
नव वर्ष का आगमन देखा है मैंने 
देवालय के द्वार पर बैठी 
रुग्ण रक्तविहीन झुर्रियों की प्रार्थनाओं में 
चिंतातुर उस पुत्र के लिए 
जो त्यागकर उसे यहाँ 
न जाने कहाँ खो गया। 
 
नव वर्ष का आगमन देखा है मैंने 
आलमारियों में ज़ब्त 
उन अक्षरों में, गीतों में, ग़ज़लों में 
तरसती एक आवाज़ को 
कि मिलेगा कोई 
जो उड़ाएगा धूल 
और बाँधेगा उन्हें लफ़्ज़ों में 
 
हाँ देखा है मैंने 
नव वर्ष का आगमन 

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