हरी चरण प्रकाश जी कहानी 'नन्दू जिज्जी'पर संक्षिप्त टिप्पणी

15-10-2020

हरी चरण प्रकाश जी कहानी 'नन्दू जिज्जी'पर संक्षिप्त टिप्पणी

राम कुमार तिवारी (अंक: 167, अक्टूबर द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

'नन्दू जिज्जी' कहानी पढ़कर राहत देने वाला अनुभव मिला। यह कहानी हिंदी में चल रहे विमर्शों की छायाओं से मुक्त है।

यह मनुष्य की कुठाओं की नहीं, दुःखों की कहानी है इसलिये यह कुछ भी आरोपित नहीं करती। जीवन और समय के मर्म को अभिव्यक्ति देती है।

कहानी के मुख्य चरित्र नन्दू जिज्जी और उनसे चार वर्ष छोटा उनका मौसेरा भाई मुन्नू है जो पढ़ाई में नन्दू से दो कक्षा पीछे है। बहिन-भाई के रिश्ते के साथ उनमें सखी-सखा भाव है। वह उनकी इच्छाओं और स्वप्नों का एकमात्र साक्षी भी है!

भारतीय दृष्टि में मनुष्य के स्वाभाव और प्रवृत्ति को देखने, समझने और जगह देने का दुर्लभ सामर्थ्य है। कोई भी स्थायी प्रतिपक्ष नहीं है।

नन्दू स्वाभाव से आलसी और एक स्वप्निल रोमानी है। को-एजूकेशन वाले कॉलेज में पढ़ते हुए भी उन्हें अपने किसी सहपाठी ने आकर्षित नहीं किया। यहाँ तक कि उन्होंने मुन्नू से कभी किसी की चर्चा भी नहीं की। उन्हें हमेशा अपनी उम्र से बड़े और छवि वाले ही पुरुष ही आकर्षित करते। उनकी एक रोमानी दुनिया होती जिसमें में कभी क्रिकेट के खिलाड़ी तो कभी उनके ही कॉलेज के तेज़-तर्ररार प्रोफ़ेसर, तो कभी उनका इलाज करने वाला युवा डॉक्टर ही नहीं– कभी तो शरतचन्द्र के उपन्यास का नायक श्रीकांत भी होता। उपन्यास पढ़कर वे मुन्नू से कहतीं, "भागलपुर जाना है। वहीं गंगा में नाव से श्रीकांत के साथ जाना है"!

कभी उनकी इच्छा कॉलेज की फ़ैन्सी ड्रेस प्रतियोगिता में फ़ुटबॉल खिलाड़ी की वर्दी पहनकर, हाफ़ पैंट में सभी को चौंकाती प्रगट हो जाती।

जीवन की विडंबना देखिए उनकी शादी आदर्श जीवन जीने वाले भले मनुष्य वैद्य विपिन से हो जाती। विपिन शाकाहारी है लेकिन नन्दू को मांसाहार खाने बनाने की पूरी छूट है। कुछ दिनों के बाद नन्दू को अकेले मांस खाने में रुचि नहीं रहती और वे छोड़ देतीं हैं।

नन्दू के जीवन की स्वप्निल स्वाभागत लय अकेली रहते एक दिन चुक जाती है और उनके जीवन में उपजा दुख एक दिन रिसते-रिसते जीवन के साथ बेआवाज़, चुपचाप चुक जाता है।

नन्दू जिज्जी के न रहने की ख़बर मुन्नू को पाँच वर्ष के बाद एक शादी के रिसेप्शन में अचानक नन्दू जिज्जी के देवर से मिलती है!

कहानी बिना कोई अतिरिक्त स्वर के मनुष्य और समय के मर्म को, उसकी गति को हमें अनुभव करा देती है।

यह वही नन्दू जिज्जी और मुन्नू का मौसेरे बहिन-भाई और सखी-सखा का रिश्ता है; जिसके मुन्नू को नन्दू जिज्जी के गुज़र जाने की ख़बर इस तरह मिलती है। हमारे रिश्तों की यही कहानी है।

इस काल गति में कहानी से मिली इस अनुभूति के लिए कहानीकार हरी चरण जी का और आपका आभार!

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