नमन करता हूँ

01-12-2020

नमन करता हूँ

नीलेश मालवीय ’नीलकंठ’ (अंक: 170, दिसंबर प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

नमन करता हूँ मैं उनको, 
जो धरा के लाड़ले हैं,
देश पर जब बात आये, 
वो ज़रा से बाबले हैं,
शादी के मंडप से उठकर, 
वो तो रण में पहुँच जाते,
सौ हज़ारों को गिराते, 
शत्रु को हुंकार से ही हरा आते,
शिव जी का त्रिशूल वो तो, 
विष्णु का जैसे सुदर्शन,
दुश्मनों के सामने, 
लगते हैं जैसे काल दर्शन,
वीरता से वो धरा पर, 
गिरते हैं तो स्वर्ग जाते,
हाथों में वो झंडा लेकर, 
तिरंगे को वो गले लगाते,
है नमन उनको मेरा . . .
 
बंदी माँ की बेड़ियों को, 
तोड़ने में प्राण त्यागे,
उनके सामने मृत्यु थी, 
फिर भी वह तो ना ही भागे,
जिनके आगे नत हिमालय, 
जिनके तेज से सूर्य हारा,
सागर की गहराई ने भी, 
ख़ुद को उन से ऊंचा पाया,
ना बुढ़ापा उन्होंने देखा, 
ना जवानी देख पाए,
लड़कपन में ही जिन्होंने, 
प्राण अपने थे गँवाए,
भगत सिंह ने अंत तक, 
इन्क़लाब का गान गाया,
इन्क़लाब कह कर उन्होंने, 
फाँसी का फंदा लगाया,
है नमन उनको मेरा . . .

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