नहीं लौट फिर   बचपन  आया

01-05-2020

नहीं लौट फिर   बचपन  आया

अनिल मिश्रा ’प्रहरी’ (अंक: 155, मई प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

संगी  - साथी  अपनों   के   दिन
आँखों  में  नित  सपनों  के दिन, 
बीते   पल   वो  खेल -  खेल   में 
कभी   रंजिशें, कभी   मेल   में। 
        साल   सरकता  पचपन   आया 
        नहीं  लौट  फिर  बचपन  आया। 


सहज, सरल, रंजित दिन  ढलते
मिट्टी  के  तरु  भी   तब   फलते, 
परी- लोक  में    अहा   विचरना
मेघों   में  दिखते   गिरि,  झरना। 
        फिर  वह  गीत  नहीं  बन  पाया 
        नहीं  लौट  फिर  बचपन  आया। 


निर्भय  थे  जीवन   के   पल - से 
झूठे-चेहरे, दल – बल- छल - से, 
हार - जीत   दोनों   ही   सम   थे
ख़ुशियों  के  आगे  दुख  कम  थे। 
        कड़ी   धूप   भी   लगती    छाया 
        नहीं  लौट  फिर   बचपन   आया। 

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