ना मिली छाँव कहीं यूँ तो कई शज़र मिले
डॉ. विजय कुमार सुखवानीना मिली छाँव कहीं यूँ तो कई शज़र मिले
वीरान ही मिले सफ़र में जो भी शहर मिले
मंजिल मिले न मिले मुझे कोई परवाह नहीं
मुझे तलाश है मंजिल की मंजिल को खबर मिले
हरगुनाह इंसान के चेहरे पर दर्ज रहता है
देखना अगर किसी रोज आइने से नज़र मिले
छोटी सी बात का लोग फ़साना बना देते हैं
अब कैसे यहाँ किसी से कोई खुल कर मिले
सबको मिला कुछ न कुछ खास कुदरत से
फूलों को मिली खुश्बू परिंदों को पर मिले
बहुत मुश्किल से मिलता है कोई चाहने वाला
खोना मत तुम्हें कोई शख़्स ऐसा अगर मिले
कहाँ हूँ किस हाल में हूँ कोई बताये मुझे
एक मुद्दत हुई मुझे अपनी ही खबर मिले
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