ना जाने  क्या  गुनाह  करने  की  बात है

15-07-2021

ना जाने  क्या  गुनाह  करने  की  बात है

संदीप कुमार तिवारी 'बेघर’ (अंक: 185, जुलाई द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

222/2121/222/212
 
ना जाने  क्या  गुनाह  करने  की  बात है।
छम से ना आइए  कि  डरने  की  बात है।
 
सबका  है   इक   उसूल  पर्दा  हो  प्रेम  में,
क्यूँ  जाने  प्रेम  में  'ये'  मरने  की  बात है।
 
आवारा  मैं  नहीं   कभी  दिल  से  पूछिए, 
ये  दिल में  आपके  गुज़रने  की  बात  है।
 
रिश्ता   है  ना  क़ुबूल  मुझ  से  तेरा  यहाँ, 
क्यूँ तेरे दिल 'में' फिर  ठहरने की  बात है।
 
मुझको ना दोष दीजिए क़ातिल हम  नहीं, 
ये तो  बस  आपकी  सँवरने  की  बात है।
 
ज़िंदा है कौन अब  यहाँ कर  के  दिल्लगी, 
फिर क्यूँ  मेरा  यहाँ  सुधरने  की  बात है।
 
'बेघर' कोई हुआ 'कि' मयकश भी हो गया,
कर के ये  प्यार  फिर मुकरने  की  बात है। 

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