मूर्खता की स्थिति
मुग्धता से
कहीं अच्छी होती है
मूर्खता के पास
अपने प्रश्न होते हैं
अपना उत्तर होता है
अपनी बुद्धि होती है
अपनी संतुष्टि होती है
और अपने पुनः प्रश्न
पुनः - पुनः प्रश्न होते हैं
क्योंकि मूर्खता
प्रश्न बहुत करती है
बिच्छू यह कभी नहीं समझता
कि साधू उसकी जान बचा रहा है
वह बार-बार डंक मारता है
मुग्धता का अपने आप में
अपना कुछ नहीं होता
न प्रश्न न उत्तर
न बुद्धि न संतुष्टि
मुग्धता का सबकुछ
उस मुट्ठी में होता है
जिस मुट्ठी पर
मुग्धता मुग्ध रहती है
जी हाँ
सँपेरे की उस उल्टी मुट्ठी में
वस्तुतः कुछ नहीं होता
जिसे दिखाकर
वह साँप को घुमाता है
मूर्खता की स्थिति
मुग्धता से थोड़ी अच्छी
इसलिए होती है
कि साँप की तरह बिच्छू
कभी किसी मजमे का तमाशा
नहीं बनता।