मुस्कान धर्म का प्रसार

18-06-2016

मुस्कान धर्म का प्रसार

डॉ. रजनीकान्त शाह

(गुणवंत शाह रचित "कोकरवर्णो तडको" के सौजन्य से सधन्यवाद)

(मूल गुजराती से हिन्दी अनुवाद)
लेखक :पद्मश्री डॉ. गुणवंतभाई शाह

अनुवाद: डॉ. रजनीकान्त शाह

मधुमालती की बेल पर रोज़ एक चमत्कार होता है। बेल पर बैठे नए फूल श्वेत होते हैं। कुछ घंटे बीतते ही वही फूल नवोढ़ा की मुस्कान को ओढ़ कर लाल हो जाते हैं। लतामंडप के नीचे प्राप्त शीतलता का अनुभव दुष्यंत और शकुंतला को हुआ था। शादी के मंडप के तले शादी के लिए विशेष मंडप होता है और जिन्हें वह ख़ुद नहीं समझ पाया है। उन मन्त्रों को पुरोहित ज़ोर-ज़ोर से गाता रहता है। जहाँ शादी की वेदी हो वहाँ अंतरात्मा हो ही ऐसा नहीं होता। लोगों की मूर्खता यदि ज़िद्दी नहीं होती तो अनेक शादियाँ मधुमालती के लतामंडप के नीचे संपन्न हुई होतीं। हमें प्राप्त पुष्पमय पागलपन किसी को भी स्वीकार्य नहीं है। यह हक़ीक़त भी कितनी रमणीय है?

आजकल सारी दुनिया बाज़ार के अत्याचारों को झेल रही है। कभी-कभी तो अत्याचार भी सुन्दर होते हैं। बाग़ में खिले किसी लाल गुलाब को वाणी प्राप्त हो तो वह मानव नामक प्राणी से क्या कहेगा? "हे हृदयहीन मनुष्य! तुम मेरी सुन्दरता के ख़रीदार हो सकते हो और मेरी सुगंध के भी भावक हो सकते हो। तुम्हारा मन बाज़ार ग्रसित है। अत: मेरी बात तुम्हारी समझ में नहीं आएगी। तुम मेरी देह को पौधे पर से तोड़ सकते हो, परन्तु अपनी मुस्कान तो मैं किसी कवि को ही दे सकता हूँ। जो बाज़ार में मिले वह मजबूरी और जो बग़ीचे में मिले वह मुस्कान!"

सब कुछ ख़रीदा सकता है, पर मुस्कान तो साहजिकता के उपवन से ही प्राप्त करनी होती है। होंठ कोई आकार धारण करे तब मुस्कान खिलती है, ऐसा नहीं है। मुस्कान के प्रगटन में आँखों की भी अनुमति होती है। मनुष्य का समग्र चेहरा मयूरनृत्य का रोमांच अनुभव करे तब किसी अनजान होठों पर मुस्कान का उदय होता है। मनुष्यत्व को जब पुष्पत्व की दीक्षा प्राप्त होती है तब मुस्कान खिलती है। हास्य उत्पन्न हो सकता है, मुस्कान उत्पन्न नहीं हो सकती। रोम-रोम से जब प्रसन्नता की ख़बर मिलती है तब कहीं मुस्कान घटना घटित होती है। बाज़ार के कोलाहल में हमारी समझ में मुस्कान धर्म आया नहीं है, इसलिए युद्ध टलते नहीं हैं। मुस्कान सी अहिंसक घटना और कोई हो नहीं सकती।
मुस्कान की भेंट मात्र मनुष्य को ही मिली है। सिंह गर्जना कर सकता है, मुस्कुरा नहीं सकता। बन्दर घुड़क सकता है, मुस्कान फैला नहीं सकता। गाय दूध दे सकती है, मुस्कान नहीं दे सकती। मुस्कराहट विहीन शुष्क चेहरा मनुष्य का हो तथापि वह जानवर का ही मित्र कहलाता है। मुस्कुराहट रहित पति की पत्नी को कोई विधवा नहीं कहता। मुस्कुराहट रहित आक्रामकता वाली पत्नी के पति को अंगत रूप से मज़दूरनी अच्छी लगने लगती है।

जहाँ किसी अनजान अस्तित्व का अभिवादन न हो, ऐसे घर का फ़र्नीचर भव्य होता है परन्तु परिवार के सदस्य अभव्य होते हैं। राम वन में न गए होते तो शबरी की निर्मल मुस्कान नहीं पा सके होते। क़ैद मनुष्य को अप्रिय लगती है क्योंकि वहाँ क़ैदी को एकाकीपन खाने लगता है उपरांत जेलर के पास और कुछ भी हो सकता है पर मुस्कुराहट नहीं होती। मुस्कराहट का अकाल जेल को असह्य बनाता है। लोग फाईव स्टार होटल में जाकर एक कप कॉफी के सत्तर रुपये देकर ज़रा सी मुस्कान के लिए तरसते हैं। सच्ची मुस्कान न मिले तो सिंथेटिक मुस्कान भी चलेगी लेकिन मुस्कान के बिना मनुष्य को रास नहीं आएगा। क़ैदी में यदि सुधार लाना हो तो उसे थोड़ी सी मुस्कान मिलती रहे ऐसा कुछ करना चाहिए। मुस्कान का अकाल अपराध का जनक है। जहाँ सच्ची मुस्कान हो वहाँ धोखाधड़ी नहीं होती।

जिस समाज में बाज़ार का बोलबाला हो, उस समाज में नाप-तौल का प्रभाव बढ़ जाता है। लोगों का वश चले तो संवेदना को लिटर में और करुणा को किलोग्राम में नापते रहेंगे। लाभ और नुकसान के तराजू से तोलने का चलन बढ़ता जा रहा है। हृदय की सच्ची आवाज़ को दबाकर और भावनाओं को आहत करके अपना उल्लू सीधा करने का लालच रोकना दिन प्रतिदिन मुश्किल होता जा रहा है। किसी की मुस्कान लज्जित हो जाती है और मुस्कान के स्थान पर स्वार्थ को सही प्रमाणित करने की कसरत चलती रहती है। कविराज करसनदास माणेक की ये पंक्तियाँ बहुत कुछ कह जाती हैं:

"बनावट की है बलिहारी
घूरा चमन हो बैठा।"

मुस्कान धर्म का प्रसार न हो तब तक समर्पण हारता रहेगा और सुविधा धर्म जीतता रहेगा। जीवन में एक तरफ वृन्दावन है तो दूसरी तरफ कुरुक्षेत्र। वृन्दावन की हार होने पर जो सताए वह कुरुक्षेत्र है। किसी निर्मल मुस्कान के साथ हुआ दुर्व्यवहार एक ऐसा पाप है, जो जीवन का चैन छीन लेता है। गीता में कहा गया है: "जो अशांत हो उसे सुख कैसा?" गुडफ्रायडे के पवित्र दिवस् पर ईसु का अविरत स्मरण होता रहता है। ईसु के जीवन के केंद्र में "सफरिंग" है। ईसाई धर्म में मनुष्य के दर्द को दिव्यता का दर्जा प्राप्त हुआ है। पीड़ा को पापमुक्ति की प्रक्रिया के रूप में देखा जाये तब वह प्रार्थना बन जाती है। प्रार्थना करते समय जो अश्रुधारा बहे उसमें पापनाशिनी गंगा की पवित्रता रही हुई है। जिसकी तरफ़ से अकथ्य पीड़ा हो, उसके कल्याण के लिए भी प्रार्थना की जाये, यही गुडफ्रायडे का सन्देश है। ईसु के प्रेमधर्म का यह सारांश है। उड़ीसा में दो बच्चों सहित ज़िन्दा जला दिया गया था, उस सदगत स्टेइन्स की पत्नी ने क्षमाभाव से जो शब्द कहे उसमें सफरिंग का सौंदर्य उजागर हुआ। जो भी दु:ख आ पड़े उसे सहन कर लेने में यदि प्रार्थना शामिल हो जाये तो दर्द भी वसूल है।

मुस्कानधर्म के साथ दर्द अपने-आप जुड़ जाता है। प्रेम पाने के लिए कोई भी उम्र बड़ी नहीं होती। बर्ट्रेंड रसेल ने ८० वर्ष की अवस्था में चौथी बार शादी की थी। नेल्सन मंडेला ने ८२ वर्ष की अवस्था में दूसरी बार शादी की थी। मिनु मसानी ने भी लगभग ९० वर्ष की अवस्था में शादी की थी। जो समाज ढलती उम्र में पनपी मित्रता का अभिवादन नहीं करता वह अविकसित कहलाता है। प्रेम के रसायण में सारे ग़ुनाह पिघल जाते हैं। मौत से पूर्व हर एक सच्चे मनुष्य के मुख पर एक बात का संतोष होना चाहिए कि उसने जीवन में अपनी मुस्कान द्वारा और कुछ नहीं तो एक व्यक्ति को शांति प्रदान की है। शायरों ने मनुष्य के हृदय में छिपे दर्द को अनोखी ऊँचाई प्रदान की है। दर्द के साथ जुड़ी हुई दिव्यता के कारण किसी ओडिटोरियम में बह रही पंक्तियाँ सभी प्रेक्षकों पर छा जाती है। जहाँ महफ़िल होती है वहाँ मुस्कान छलक उठती है और यदि ध्यान से देखने की आदत है तो मुस्कान की निर्झरी के साथ बह रही गुप्त दर्द की निर्झरिणी भी नज़र आती है।

दुनिया को युद्ध के मैदान में पराक्रम की प्रशस्ति करना आता है। जिसकी ओर से पारावार पीड़ा पहुँची हो, उसके लिए प्रार्थना करने में छिपे पराक्रम की प्रशस्ति कर सके ऐसी दुनिया का हम अभी तक सृजन नहीं कर पाए हैं। प्रार्थना की गहराई की अनुभूति जितनी पीड़ा के क्षणों में होती है, उतनी सुख के क्षणों में नहीं होती। पीड़ा तो प्रार्थना की परम सखी है। कल-कल निनाद करते हुए बही जा रही नदी को भी कभी पनघट से लगाव हो जाता है। जहाँ माया हो, वहाँ मुस्कान का होना अवश्यम्भावी है और जहाँ मुस्कान हो वहाँ प्रच्छन्न दर्द भी होगा ही। मनुष्य को ऊँचाई पर ले जाने के लिए दोनों आवश्यक हैं।

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