मुक़द्दर में सभी के बेटियाँ

01-06-2020

मुक़द्दर में सभी के बेटियाँ

कु. सुरेश सांगवान 'सरू’ (अंक: 157, जून प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

मुक़द्दर में सभी के बेटियाँ होती नहीं साहिब 
जहाँ बेटी न हो रानाइयाँ होती नहीं साहिब 


कभी तूफ़ाँ से लड़ना है कभी लहरों से भिड़ जाना
किनारों के लिए तो कश्तियाँ होती नहीं साहिब 


बधाई ले रहे बेटे उपेक्षित हो रही बेटी
बिना ही बात दिल में सिसकियाँ होती नहीं साहिब


ख़ुशी नग़मा तराना और पायल नाम हैं इनके 
कहीं इनके बिना मौसीक़ियाँ होती नहीं साहिब


दबी आवाज़ में अपना फ़साना कह रही बुलबुल 
मिरे मीठे सुरों में तल्ख़ियां होती नहीं साहिब

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