मुक्ति होगी कब व्याधि से

01-07-2021

मुक्ति होगी कब व्याधि से

सुशील यादव (अंक: 184, जुलाई प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

हम कोलाहल में जीने वाले ,
शांति-पथ में भटक गए हैं।
 
नफ़रत के बीज कभी उगाते
रोपा करते  खेतों ख़ंजर
इसी धरा से सब पाया
युगों युगों था घोषित बंजर
 
पर आसमान छलाँग लगा कर
हमी  त्रिशंकु लटक गए हैं ।
 
हम  जीना सीख रहे थे 
कुत्सित मर्यादा को पाले 
भेद भाव की राजनीति में
पिटते देखे भोले भाले 
 
बोलचाल के शब्दों भीतर
अपशब्दों को पटक गए हैं
 
हर चेहरा बेबस लाचार यहाँ
मातम पसरा बाज़ार यहाँ 
ख़रीद सके हैं पैसे वाले
इतना महँगा उपचार यहाँ 
 
मुक्ति होगी कब व्याधि से 
संशय शीशे चटक गए हैं।

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