मुझको उसकी ख़बर नहीं मालूम
डॉ. जियाउर रहमान जाफरी
मुझको उसकी ख़बर नहीं मालूम
है कहाँ पर वो घर नहीं मालूम
जब भी पूछा सितारे कहने लगे
क्या हुआ चांद पर नहीं मालूम
बन गए इतने बेख़बर हम सब
हम इधर थे उधर नहीं मालूम
मेरी कुटिया थी एक कोने में
मुझको चारों पहर नहीं मालूम
चुन लिया फिर से मैंने उनको तो
इस ज़हर का असर नहीं मालूम
मेरी मंज़िल हमें दिखाते थे
जिनको अपना सफ़र नहीं मालूम
मुझको चाहे वो सर क़लम कर दे
हम कहेंगे मगर नहीं मालूम
देख लेंगे हम जात पात मगर
किसमें कैसा हुनर नहीं मालूम
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