मुहब्बत में ख़ुशी और दर्द का रिश्ता पुराना है

01-09-2020

मुहब्बत में ख़ुशी और दर्द का रिश्ता पुराना है

राज़दान ’राज़’ (अंक: 163, सितम्बर प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

(राज़-ए-दिल से)

१२२२  १२२२  १२२२ १२२२

 
मुहब्बत में ख़ुशी और दर्द का रिश्ता पुराना है
कभी हँसना हँसाना है कभी रोना रुलाना है
 

जो डूबे इश्क़ में करते हैं सब वादे वफ़ाओं के
पता भी है कि मुश्किल ऐसे वादों का निभाना है
 

उन्हें होती है कोई या न कोई रोज़ मजबूरी
कहें कैसे कि सच है या फ़क़त उनका बहाना है
 

अजब होती है दिल की कैफ़ियत जब सामने हों वो 
पता लगता नहीं रोना कि हमको मुस्कुराना है
 

अगर वो आएँ तो आते ही पहली बात कहते हैं
हमारे पास कम है वक़्त और जल्दी भी जाना है

 
लगाकर जो वो आंखों में, नज़र से मुस्कुराते हैं
वही काजल हमें अब उनकी आंखों से चुराना है

 
ज़रूरत ‘राज़’ की उन को कभी पड़ जाए तो देखो
उन्हें मालूम है सब किस तरह हम को बुलाना है

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