मोरपंख

डॉ. वंदना मुकेश (अंक: 177, मार्च द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

मोर को जंगल के पशु-पक्षियों से सख़्त शिकायत थी। पहले तो वर्षा ऋतु के आते ही मोरनियाँ मोर के इर्द-गिर्द  घूमने लगतीं, यहाँ तक कि खरगोश, बंदर, चूहे, कबूतर और भाँति-भाँति के पशु-पक्षी इत्यादि भी उसके इर्द-गिर्द घूमते नज़र आते। वर्षा के आने की आहट मोर को दीवाना कर देती। वह अपने पंख पसार-पसार कर, कैहौं-कैहौं की टेर लगाता, नाचता, मोहिनी फेंकता और मोरनी उसके ख़ूबसूरत पंखों  पर न्योछावर अपने समर्पण की सहमति जड़ देती।

सारस ने तो कितनी बार आह भर कर कहा कि काश मेरे पंख भी तुम्हारी तरह होते...

लेकिन समय का फेर, इधर इंसानों ने बेरहमी से जंगलों को काटना शुरू किया कि वर्षा का कुछ अता-पता नहीं, कब जाड़ा , कब गर्मी सब कुछ गड्डमड्ड। यहाँ तक कि पशु भी इंसानी बोली बोलने लगे। अब न  खरगोश, न बंदर, न चूहे  न ही कबूतर तीतर-बटेर उत्सुकता से मोर के पंख पसारने की प्रतीक्षा करें और न ही मोरनी। 

मोर यह नहीं समझ पाया कि इस दौरान उसके बहुत से पंख झड़ गये हैं। अब यह कमी स्पष्ट नज़र आती है कि कमाल उसके नाच का नहीं, पंखों के ख़ूबसूरत रंगों का था। वरना, नाच से मोर का क्या वास्ता? संभवतः उन रंगों  की धनक से वह बौराया सा इधर-उधर फिरता। अनाड़ी उसे ही नाच समझ बैठे। और वैसे देखा जाए तो पंखों का कमाल ही सही, अंधों में काना राजा तो वह ही था। लेकिन कुछ समय से मोर को लग रहा था कि उसका जादू फीका पड़ रहा है अब वह क्या कर, कैसे ध्यान आकर्षित करे लोगों का ?

उन्हीं दिनों की बात है। शहर से मोर के यहाँ कुछ मेहमान आए। संयोग से हल्की बूँदा-बाँदी हो गई। मोर का मन नहीं माना और वह ख़ुशी में पंख फैला-फैला कर नाचने लगा। शहरी मेहमानों को भला यों सहज में मोर देखना भी नसीब नहीं, मोर के नाच की कल्पना तो उनकी बुद्धि से परे थी। यह सुंदर दृश्य। सो, उन्होंने जी भर कर प्रशंसा की। क़द्रदानों को पाकर मोर भी झूम उठा। मोर की मेहमानवाज़ी के कारण साँप-बिच्छुओं का ख़तरा भी दूर। मेहमान कृतज्ञ हो गये। वे चाहते थे  किसी तरह मोर को उपकृत कर सकें सो उन्होंने नाचते हुए मोर की जी भर कर तस्वीरें ली और मोर से आज्ञा लेकर तुरंत ही फ़ेसबुक पर चढ़ा दीं। 24 घंटे भी नहीं गुज़रे थे कि उन्होंने मोर को बताया कि उन तस्वीरों पर एक करोड़ से ज़्यादा की 'लाईक' आ गये और लगभग एक करोड़ कमेंट। मोर गद्‌गद्‌ हो गया उसे ये मेहमान साक्षात्‌ ईश्वर से प्रतीत हो रहे थे, जिन्होंने उसे रातों-रात में एक जानी-मानी हस्ती बना डाला। मेहमानों ने बताया कि उनकी पहचान के कुछ लोगों ने  मोर को अपनी संस्था में सम्मान करने हेतु बुलाया है। मोर को ख़ुशी के कारण कुछ नहीं सूझ रहा था। इंटरनैट की सुविधा ने मोर को फिर संसार के कोने-कोने से जोड़ दिया। नृत्य की तस्वीरों और नेटवर्किंग के बल पर उसे नृत्य के लिए राष्ट्रीय–अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों ने नवाज़ा गया। अब मोर को लगा कि कब तक प्रतीक्षा करूँ बादलों के घिरने की, सो मौसम-बेमौसम बिना पंख नाचने लगा। पंख तो सारे खिर चुके थे। लेकिन मोर के मुँह प्रसिद्धि का ख़ून लग चुका था। 

आजकल मोर नृत्य के लिए ‘नेटवर्किंग’ से मिले राष्ट्रीय–अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों की वही तस्वीरें बार-बार सोशल मीडिया पर लगाकर अपनी प्रसिद्धि की हवस को जैसे-तैसे बुझा रहा है।

पिछले तीन दिनों से किसी भी तस्वीर पर एक भी 'लाईक' नहीं मिला है, मोर बीमार है।

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