2122 2122 2122 212
मिल रही है शिकस्त, चारों तरफ़ नाकामियाँ
उतरने को आ गईं पहनी हुई अब टोपियाँ
चमन जो गुलज़ार था, आती कहाँ थी मुश्किलें
पतझड़ों के ख़ौफ़ अब, आती नहीं हैं तितलियाँ
ये जबीं मेरे लिखा है कौन, काजल से तुझे
आ गई मेरे क़रीब, ज़माने की दुश्वारियाँ
तू सियासत माहिरों की, महफ़िलों से उठ के आ
अब वहाँ मिलती कराहें, आह भरती सिसकियाँ
सब नसीबों खेलते हैं, बन करोड़ों जाए हैं
रात-दिन केवल गिनो, अपनी कमी नाकामियाँ