मेरी दुबई यात्रा - 1 : बुर्ज ख़लीफ़ा की शाम

15-01-2020

मेरी दुबई यात्रा - 1 : बुर्ज ख़लीफ़ा की शाम

शामिख फ़राज़ (अंक: 148, जनवरी द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

लैपटॉप के स्क्रीन पर कुछ पुरानी तस्वीरें देखते वक़्त यह ख़याल आया कि क्यों न इन तस्वीरों से जुड़ी यादों को अल्फ़ाज़ की शक्ल दी जाए और शुरुआत की यह यात्रा संस्मरण लिखने की। आज जिस शहर के सफ़र की मैं दास्ताँ लिखने जा रहा हूँ, वह एक ऐसा शहर है जिसके पास हज़ारों वजहें हैं मशहूर होने की। मैं बात कर रहा हूँ दुबई की। दुबई संयुक्त अरब अमीरात का एक प्रोविंस है।हालाँकि मैं इससे पहले भी एक बार दुबई जा चुका हूँ, लेकिन इस बार का सफ़र कुछ ज़्यादा ही मज़ेदार होने वाला था। उसकी वजह थी मेरे ख़ास दोस्त एस के शर्मा का साथ होना। वह भी मेरे साथ जा रहे थे, या यूँ कहिए कि यह ट्रिप उन्होंने ही प्लान किया था। जब कोई क़रीबी दोस्त साथ हो तो सफ़र का मज़ा कई गुना बढ़ जाता है।

उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से ट्रेन से दिल्ली पहुँचना और फिर पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पहुँचना, थोड़ा थकान भरा था लेकिन ख़राब नहीं। हमारी फ़्लाइट सुबह 8:40 पर थी। हम लोग रात 2 :30 पर एयरपोर्ट पहुँच चुके थे। वहाँ पहुँच कर सबसे पहले हमने रुपये को दुबई करेंसी दिरहम में बदला। फिर फ़्लाइट काउंटर खुलते ही बाक़ी औपचारिकताएँ पूरी करके फ़्लाइट में अपनी सीट ले ली।

एयर इंडिया की फ़्लाइट होने की वजह से सभी एयर होस्टेस साड़ी में हीं थीं जो कि भारतीय संस्कृति की एक झलक थी। कुछ ही देर में हमारा लोहे का पंछी हमें आसमान में ले गया। यह मेरा पहला इत्तेफ़ाक़ जब मैं दिन में कोई हवाई सफ़र कर रहा था। इससे पहले जितने भी हवाई सफ़र रहे सब रात में ही किए।खिड़की से बाहर का नज़ारा अलग ही था। प्लेन बादलों से भी ऊपर उड़ रहा रहा था। खिड़की से बाहर देखने पर लग रहा था जैसे आसमान नीचे रह गया हो और हम ऊपर उड़ रहे हैं।  

3 घण्टे और कुछ मिनट का सफ़र करके हम दुबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर लैंड कर गए। एयरपोर्ट से सीधे होटल पहुँच कर चेक-इन किया।

वैसे तो दुबई बहुत सी बातों के लिए जाना जाता है लेकिन हमने कुछ चुनिंदा विज़िट ही प्लान किए थे , जिनमें पहले नंबर पर था बुर्ज ख़लीफ़ा। दुनिया के सबसे ऊँचे टॉवर से दुनिया देखने के बारे में ही सोचने से रोमांच पैदा हो रहा था, देखने पर तो पता नहीं क्या होगा! बुर्ज ख़लीफ़ा तो किसी भी दिन देखा जा सकता है, लेकिन दिन में किस वक़्त देखा जाए यह अहम है। बुर्ज ख़लीफ़ा देखने का सबसे अच्छा वक़्त दोनों वक़्त मिलने का समय होता है। तीसरे पहर में बुर्ज ख़लीफ़ा की टॉप से शहर देखना और शाम हो जाने पर जलती लाइट्स में फिर वही शहर देखना। अपने आप में अलग ही अनुभव देता है। एक ही शहर दिन और रात में कितना अलग था।दिन में जहाँ तक नज़र जा रही थी आख़िर में एक धुंध ही नज़र आ रही थी। आँख एक हद तक ही इमारतें देख पा रही थी और उसके आगे ग़ुबार ही ग़ुबार था।

लेकिन वही शहर रात में बहुत खूबसूरत नज़र आ रहा था। सड़कें इमारतें सब जगमगा रहीं थीं। ऐसा लग रहा था जैसे रोशनी की बर्फ़बारी हुई हो और वह इमारतों पर जमा हो गई हो। बुर्ज ख़लीफ़ा के टॉप से देखने पर नीचे सड़कों पर चलती हुईं गाड़ियाँ ऐसी लग रहीं थीं जैसे चमकीली चीटियाँ चल रहीं हों। कुछ इमारतों पर लाइट्स जल बुझ रही थी जिसे देखकर लगता था जैसे इमारतों पर जमा रोशनी हवा लगने से सुलग रही हो। अभी दुनिया के सबसे ऊँचे टॉवर से दिल भरा भी नहीं था, लेकिन नीचे फ़ाउंटेन शो होने वाला था जो अपने आप में ख़ास होता है। अब हम लोग नीचे फ़ाउंटेन शो देखने पहुँच चुके थे। छोटी सी झील में कुछ ख़ास क़िस्म के फ़व्वारे लगे थे जिनमें से डान्स करता हुआ पानी निकलने वाला था। रात ठीक 9 बजे फ़ाउंटेन शो शुरू हुआ। गीत और संगीत दोनों ही मस्त लगे। दूसरी भाषा में होने के बावजूद गीत सुनने में अच्छा लग रहा था। गीत के साथ ही शुरू हुआ डांसिंग फ़ाउंटेन शो। फव्वारों से रंग बिरंगे पानी का निकलना। ऐसा लग रहा था जैसे पानी गीत की धुन पर थिरक रहा हो। अलग-अलग देशों से आये लोगों ने अपना कैमरा निकलकर नज़ारा शूट करना शुरू कर दिया था। 'पानी वाला डांस' ख़त्म होने के बाद शुरू हुआ बुर्ज ख़लीफ़ा की टॉवर पर बनने वाले अलग-अलग डिज़ाइन का शो। 830 मीटर ऊँची मीनार पर तरह-तरह के डिज़ाइन पल भर में बनते और कुछ पल ठहर कर बदल जाते। दिन के तीसरे पहर से लेकर रात तक कुछ घंटों का यह तजरबा एक अलग तरह का ही तजरबा रहा। सब कुछ नया, जुदा और दिलचस्प। शो के पूरी तरह से ख़त्म होने के बाद शुरू हुआ आज के इंसान में पाया जाने वाला एक ख़ास शौक़ यानी फ़ोटोग्राफ़ी का शौक़। हर कोई अपनी पोज़ीशन सेट कर बुर्ज ख़लीफ़ा के साथ फ़ोटो लेना चाहता था और हम भी उसी फ़ेहरिस्त (लिस्ट) में शामिल थे।

हमने भी कितने एंगल से कैमरे को सेट किया कि बुर्ज ख़लीफ़ा को नीचे से ऊपर तक पूरा क़ैद कर सकें। कई कोशिशों के बाद ऐसा करने में कामयाब भी रहे। मैंने तो सिर्फ फ़ोटो ही क्लिक किए लेकिन शर्मा जी ने वीडियो भी शूट किए, वह भी इस तरह से कि सोशल मीडिया पर आसानी से अपलोड किए जा सकें। फ़ाउंटेन शो और बुर्ज ख़लीफ़ा के अलावा यह दिन एक और बात के लिए भी यादगार रहेगा। दुनिया भर के अलग रंग, अलग क़िस्म, अलग ज़ुबान, अलग पहनावे, अलग तौर तरीकों के लोगों को एक साथ देखने के लिए। पूरे प्रोग्राम का लुत्फ़ उठाकर पास ही में दुबई मॉल था, हम लोग ने वहाँ का रुख़ कर लिया और फिर देर रात होटल में वापस आ गए।

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