मेरे बच्चो, दीवाली का पहला दीप वहाँ धर आना...

27-10-2016

मेरे बच्चो, दीवाली का पहला दीप वहाँ धर आना...

डॉ. प्रतिभा सक्सेना

जिस घर से कोई निकला हो अपने सिर पर कफ़न बाँधकर,
सुख-सुविधा, घर-द्वार छोड़ कर मातृभूमि के आवाहन पर।
बच्चों, उसके घर जा कर तुम उन सबकी भी सुध ले लेना
खील-बताशे लाने वाला कोई है क्या उनके भी घर?
अपने साथ उन्हें भी थोड़ी, इस दिन तो ख़ुशियाँ दे आना।


छाँह पिता की छिनी सिरों से जिनकी, सिर्फ़ हमारे कारण
हम सब रहें सुरक्षित, जो बलिदान कर गए अपना जीवन
बूढ़े माता-पिता विवश से, आदर सहित चरण छू लेना,
अपने साथ हँसाना, भर देना उनके मन का सूनापन,
आदर-मान और अपनापन दे कर उनका आशीष पाना!


दीवाली की धूम-धाम से अलग न वे रह जायें अकेले,
तुम सुख-शान्ति पा सको, इसीलिए तो उनने यह दुख झेले।
उन सबका जीवन खो बैठा धूम-धाम फुलझड़ी पटाखे,
रह न जायें वे अलग-थलग जब लगें पर्व-तिथियों के मेले।
उनकी जगह अगर तुम होते, यही सोच सद्भाव दिखाना।


हम निचिंत हो पनप सके वे मातृभूमि की खाद बन गये,
रक्त-धार से सींची माटी, सीने पर ले घाव सो गए।
वह उदास नारी, जिसके माथे का सूरज अस्त हो गया,
तुम क्या दे पाओगे ,जिसके आगत सभी विहान खो गए!
उसने तो दे दिया सभी कुछ, अब तुम उसकी आन निभाना.


अपने जैसा ही समझो, उन का मुरझाया जो बेबस मन,
देखो ,बिना दुलार -प्यार के बीत न जाए कोई बचपन।
न्यायोचित व्यवहार यही है- उनका हिस्सा मिले उन्हें ही,
वे जीवन्त प्रमाण रख गए, साधी कठिन काल की थ्योरम
अपनी ही सामर्थ्यों से, बच्चों तुम 'इतिसिद्धम्' लिख जाना!

(थ्योरम = Theorem.,प्रमेय)

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी
बाल साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता
ललित निबन्ध
साहित्यिक आलेख
किशोर साहित्य कविता
बाल साहित्य कहानी
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में