मौन-व्रत

सतिंदरपाल बावा (अंक: 150, फरवरी द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

पहले हमारा उपवास में कोई विश्वास नहीं था, लेकिन जब से नया युग शुरू हुआ है, हमने इन परिस्थितियों से निपटने के लिए उपवास रखने शुरू कर दिये हैं, क्योंकि हमारा मानना है कि यदि किसी युग की धारणा व विचारधारा को समझना है, तो उस युग के महाप्रवचनों को व्यावहारिक रूप से आत्मसात करके ही समझा जा सकता है। अतः हमने अपनी समकालिक स्थितिओं को समझने के लिये ही उपवास रखने शुरू किये हैं। उपवास से यहाँ हमारा अर्थ खाने वाले खाद्य पदार्थों का त्याग नहीं है। वैसे भी, नए-युग के समर्थकों ने खाद्य व स्वादिष्ट पदार्थों पर प्रतिबंध लगा कर उपवास जैसी स्थिति तो पहले से ही बना रखी है। दूसरा, भाई हम भोजन के बिना तो जीवत नहीं रह सकते क्योंकि खाने को देख कर हम से कंट्रोल नहीं होता, इसलिए हम ने उपवास तो रखा है लेकिन उस को मौन-व्रत के रूप में रखा है।

अब, जब चारों ओर शोर-शराबा हो रहा है, तो आप में से कोई सज्जन पूछ सकता है कि अब कौन मौन-व्रत रखता है? यह तो आउट डेटेड फ़ैशन है क्योंकि यह कौन-सा महात्मा गाँधी का युग है कि हम उपवास करके या मौन रहकर अपना विरोध प्रगट करें? लेकिन भई हम तर्क से सिद्ध कर सकते हैं कि आज भी भारत में मौन-व्रत उतना ही कारगर हथियार है जितना कि ब्रिटिश सरकार के समय था।

जब मौन शब्द के साथ व्रत शब्द जुड़ जाता है तो यह एक नए अर्थ में प्रवेश कर जाता है। जिस तरह विज्ञापनों में छोटा-सा सितारा 'शर्तें लागू' कहकर सचमुच दिन में तारे दिखा देता है उसी तरह, मौन के साथ व्रत शब्द जुड़ कर कड़े नियमों में प्रवेश कर जाता है। जिस में 'मन की मौत' की घोषणा भी शामिल होती है। हालाँकि हमने लम्बी चुप्पी साध रखी है, लेकिन हमारे मन की मृत्यु नहीं हुई है! जैसे कि आम तौर पर मौन-व्रत रखने से होता है कि मन में जो संकल्प-विकल्प उठते हैं, उन पर नियंत्रण हो जाता है। पर भाई... मन तो मन है जो हर समय नामुमकिन को मुमकिन बनाने के लिए हमेशा संघर्षशील और चलायमान रहता है।

जिस क्षण से हम ने मूक रहने का दृढ़ संकल्प लिया है, उस दिन से ही कई बार हमारी चुप्पी पर सर्जिकल स्ट्राइक हो चुके हैं लेकिन मजाल है जो हमने अपनी चुप्पी तोड़ी हो। पहले, हम समझते थे कि हमारे पड़ोसी ही हमारी चुप्पी को लेकर दुखी रहते हैं, लेकिन अब ऐसा लगता है कि इस नए दौर में सारा देश ही हमारी चुप्पी से ख़फ़ा है, हमें लगता है कि हमारी चुप्पी का राष्ट्रीकरण हो चुका रहा है। कभी-कभी हमें यह भी लगता है कि हमारी चुप्पी का वैश्वीकरण किया जा रहा है। चूँकि अब तो विदेशों में भी लंबे-चौड़े लेख केवल हमारी चुप्पी पर ही प्रकाशित होते हैं। आफ़्टर आल हम भी भाई ग्लोबल नागरिक हैं और थोड़ी बहुत ख़बर तो हमें भी रखनी ही पड़ती है।

हमारी प्यारी पत्नी तो हमारी चुप्पी से बेहद दुखी हो गई। पहले तो हमारे बीच नोक-झोंक का तीसरा महायुद्ध चलता ही रहता था। कभी-कभी तो संसदीय हंगामा भी हो जाता था। लेकिन अब उसकी हालत बहुमत वाली विजेता पार्टी की तरह हो गई है, जहाँ विरोध की सभी संभावनाएँ समाप्त हो गई हैं। इन परिणामों के आकलन के बाद उन्होंने कई बार शीत युद्ध का प्रस्ताव रखा है, परंतु हमने उसका जवाब ही नहीं दिया क्योंकि हमने तो मौन-व्रत रखा हुआ है।

आजकल हमारी चुप्पी पर कई तरह की बातें की जा रही हैं। कल ही की तो बात है कि हमारे पड़ोसी हम से कहने लगे क्या बात है बड़बोला राम जी आजकल बहुत गुम-सुम से रहने लगे हो? हम क्या बताते कि आंतरिक और बाहरी दबाव के कारण हमारी बोलती बंद है। हम ने उनको कोई जवाब नहीं दिया और आगे बढ़ गए क्योंकि हम ने तो 'एक चुप सौ सुख' मंत्र धारण कर रखा था।

चूँकि हम चुप हैं इसलिए हमें अपनी सुरक्षा के लिए किसी भी प्रार्थना सभा में शामिल होने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि हमें इस बात का ज्ञान हो गया है कि जब तक हम चुप हैं हम सुरक्षित हाथों में हैं, हम देश प्रेमी हैं, देशभक्त हैं और देश के विकास में चुप रह कर हम बहुत बड़ा योगदान दे रहे हैं क्योंकि हमारा मानना है के यह योगदान भी किसी 'शुभ दान' या 'गुप्त दान' से कम नहीं है। इधर हमने अपना मुँह खोला नहीं; उधर से आक्रमण शुरू हुए नहीं कि यह देश-द्रोही है, गद्दार है, देश के विकास में बाधा डालता है, अन्यथा हमें नक्सली समर्थक ही कहना शुरू कर देंगे।

भले ही हम महात्मा गाँधी के शांति संदेश से बहुत प्रभावित और प्रेरित हैं, लेकिन अब हमने शांति का प्रचार करना भी बंद कर दिया है, क्योंकि हमें अब डर लगता है कि पता नहीं कब हमें कोई यह कह दे कि ऐसी बातें करनी है तो भाई साहिब आप पाकिस्तान चले जाओ, वहाँ आपकी ज़्यादा ज़रूरत है। इस लिए तो भई हमने मौन-व्रत रखा है। लेकिन चुप्पी के साथ साथ; हमारी सूक्ष्म दृष्टि में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। अब हम जगह-जगह सरकारी बोर्डों का अर्थ ख़ूब समझने लगे हैं, जैसे 'बचाव में ही बचाव है', 'आपकी सुरक्षा परिवार की रक्षा' आदि।

अब आप कहेंगे हम बहुत विरोधाभासी बातें कर रहे हैं। लेकिन जब यह युग ही विरोधी विचारधारा का है, तो हम इसके प्रभाव से कैसे मुक्त हो सकते हैं! लेकिन हमने अपनी सूक्ष्म दृष्टि से आप के मन की बात भी जान ली है कि आप हम से क्या पूछना चाहते हैं। अरे महाराज! भूल गए! हमने तो मौन-व्रत रखा हुआ है।

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