"दिवंगत आत्मा की शांति हेतु दो मिनिट का मौन," संयोजक की घोषणा हुई। कुछ सेकेण्‍ड गुज़रे। एक ने पलकों को खोल हौले से घड़ी देखी। अभी तो पन्द्रह सेकेण्ड ही हुए थे। दूसरे ने धीरे से आँख खोल अन्यों को देखा। अधिकांश आँखें "मिच-मिच" कर रही थीं।

"अभी तो चालीस सेकेण्ड ही हुए हैं," वह फुसफुसाया।

एक बुज़ुर्ग ने इधर-उधर नज़र दौड़ाई। एक "शोकाकुल" माथे पर खाज कर रहा था। दूसरा "शोक संतप्‍त" कान कुचर रहा था। तीसरा मोबाईल पर अँगुलियाँ थिरका रहा था। चौथा सेल्फ़ी लेकर "शोकाभिव्‍यक्ति" दे रहा था। जो दो-तीन महिलाएँ थीं, उमस से "उफ़-उफ़" मुद्रा में थीं। संयोजक ने घड़ी देखी, अभी तो सवा मिनिट ही नहीं हुआ था। वह वापिस आँखें बंद करने को था, तभी उसकी पसलियों में आयोजक की कुहनी लगी। आयोजक ने सख़्त नज़र से संकेत किया कि दो मिनिट "हो" गये। संयोजक बोला, "ओम शांति: शांति:"। पुष्‍प चढ़ी मालाओं के बीच दिवंगत की फ़ोटो ने शोकाकुलों को देखा....मौन पूरा हुआ।

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