मत टूटना तुम

01-05-2021

मत टूटना तुम

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 180, मई प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

मत टूटना भले ही
मौत करती रहे तांडव
तुम्हारे आसपास
 
मत टूटना भले ही
दुःख के समय
तुम्हारे अपने अजनबी
बन मुँह मोड़ लें।
 
मत टूटना भले ही
कितने अपने तुम्हें
छोड़ कर जा चुके हों
अनंत यात्रा पर।
 
कितनी ही कराहें
तुम्हारे आसपास
तुम्हारे कानों में
पिघला सीसा उड़ेल रही हों
 
कितनी ही सिसकियाँ
तुम्हारे अंतर्मन को भेद कर
तुम्हें झुकाने की कोशिश में हों
मत टूटना 
 
मत टूटना भले ही
तुम्हारा तन
लड़ रहा हो मौत का युद्ध
और तुम्हारी साँसें 
खेल रहीं हों आँख मिचौली।
 
एक दिन जाना सबको है
यहाँ कोई अमर नहीं है
यही सोचकर
करते रहना मौत का मुक़ाबला
मत टूटना तुम।
 
लड़ते रहना, मुस्कुराते रहना
देते रहना संजीवनी
उन हज़ार साँसों को
जो देखना चाहती हैं तुमको
मौत से जीतना।
मत टूटना तुम।

1 टिप्पणियाँ

  • मत टूटना भले ही दुःख के समय तुम्हारे अपने अजनबी बन मुँह मोड़ लें।पंक्ति बहुत अच्छी लगी हौसला बढाने वाली कविता संजीवनी। बधाई

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