मनुष्य

डॉ. परमजीत ओबराय (अंक: 166, अक्टूबर प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

अब तक था मनुष्य – 
अन्य का दुश्मन,
हैरान कर दिया उसने –
लगा करने,
अपने पर ही सितम।
स्वयं की रक्षा हेतु-
न घर बैठ पाए,
बाहर जाकर न उसे –
साथ अपने ले आए।
सतर्क करने पर भी न करे –
अपना ध्यान ,
जाने क्यों बन रहा –
वह स्वयं से ही अनजान?
 
बाहर दंड दंभ है–
क्या मनुज न तुझे यह ख़बर है?
बार-बार  तुझे –
तेरे स्वयं हेतु समझाते,
तिरस्कृत कर उन हिदायतों को–
हँसी हो तुम उनकी उड़ाते।
अपनी रक्षा न कर  पाए...
किन्तु अन्य में है
क्यों फैलाए? 
 
यह करोना वायरस–
है क्यों न तुझे समझ आए?
अपनी मत को जान बूझकर –
है मूढ़ क्यों बनाए?
घर बैठ अपनों संग –
समय न बिता पाए।
दिखाते हैं ये कर्म –
तेरे संस्कार,
संस्कार तो शायद ठीक थे
पर किया तूने,
इन पर अपनी मनमत का वार।
 
देख संसार के आँसू –
यूँ उतर रहा अभी सड़क पर,
न जाने क्या हादसा हो –
ज़रा न डर,
असर है तुझपर।
आधुनिक मानव होकर भी –
हो रहा पथभ्रष्ट,
अन्य  को तो होगा –
संग में होंगे तुझे भी कष्ट। 
ईश की इस परीक्षा को
होगा करना तुझे स्वीकार,
अच्छे अंक आएँगे
जब तू करेगा,
रख अपना स्वयं ध्यान।
कितने चिकित्सक कर रहे
हाथ जोड़ यह आह्वान, 
मानव तू घर रहकर
कर स्वयं पर इतना अहसान।

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