मैं वक़्त हूँ 

15-03-2020

मैं वक़्त हूँ 

अरुण कुमार प्रसाद (अंक: 152, मार्च द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

नहीं, मैं लौटता नहीं हूँ 
मैं आता हूँ 
मैं वक़्त हूँ 


अवसर हूँ मैं 
अक्सर नहीं,  
आता ही हूँ मैं 
किन्तु, चले जाने के लिए 
मैं अभिशप्त हूँ 


मैं तुम्हारे कौशल, प्रवृति, प्रकृति, 
अनुभव और ज्ञान के सामने आता हूँ 
उन्हें उकसाता हूँ 
मैं बढ़ जाता हूँ 
साथ चलने का विकल्प है 
चलो न, चलो 


बढ़ते चले जाना 
मेरी नियति है  
यही मेरी सद्गति है 
मैं वक़्त हूँ 
मैं सब का हूँ 
मैं किसीका नहीं हूँ  
यहाँ मैं बड़ा सख़्त हूँ 


मैं काल का हिस्सा हूँ,  
कल का भी
अनादि हूँ , शाश्वत हूँ 
काल का एक खंड 
तुम्हें देता आया हूँ 
काल का छोटा हिस्सा 
हर अस्तित्व को देता हूँ

 
ब्रह्मांड का हर अस्तित्व 
ब्रह्मांड का हिस्सा है 
मैं भी
मैं पर, नष्ट नहीं होता
अन्य तात्विक, अतात्विक 
सत्वों/सत्ताओं की भाँति   
अदृश्य होकर भी हमेशा 
प्रत्यक्ष हूँ 


मैं बताता हूँ कि
मैं हूँ कौन 
मुखर होकर भी 
हूँ मौन 
वास्तव में मैं ब्रह्मांड का
अक्ष हूँ 


मेरा भूत, वर्तमान 
और भविष्य है
और बड़ा आसान है   
इन्हीं अवस्थाओं में,  
गणित, 
मुझे गढ़ता तथा देता
पहचान है 


मैं इस पल तोला तो 
उस पल मासा हूँ 
मैं मजलूमों की आशा हूँ  
वे देखते हैं 
मेरी राह 
मैं सर्वदा उज्जवल रहूँ
ऐसी रहती है मेरी चाह 


मैं वक़्त हूँ 
आना मेरा धर्म है 
मेरा होना, 
ईश्वर का संदर्भ है 


ईश्वर को 
मैं देता हूँ जन्म, मृत्यु  
मैं हूँ 
उसका प्रारब्ध 
यह मेरा कहा हुआ है
सत्य शब्द 


मूर्त, अमूर्त;
जीवन, जड़
पदार्थ, अपदार्थ—
मेरे अंक में 
आत्मा, परमात्मा; 
अणु, परमाणु;
आदि, अनन्त
मेरे संग में 


मैं मनुष्य/जीवन का 
समय हूँ  
क्योंकि  
मेरा आकलन, 
असंभव 
इसलिए हमेशा उसका 
भय हूँ 


मेरे बिना सब अकेले हैं 
पत्थर हो या जल 
धूल हो या पहाड़ 
तम हो या प्रकाश 
अंक या अक्षर 
बुद्धि और विवेक 
स्वार्थ और परमार्थ
आदि, इत्यादि 
मैं सबका इतिहास हूँ 
मैं सबका  स्वप्न हूँ  
मैं समय हूँ 


मुझमें गति है 
मैं आगे चलता हूँ 
मैं कभी जाता नहीं 
मुझमें दृष्टि है 
मैं पीछे देखता हूँ 
मैं लौटता नहीं 
मैं स्वयं को दुहराता नहीं 
मैं काल हूँ 
ब्रह्मांड का अंतर्जाल हूँ 

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