मैं तो केवल इस फ़िज़ां में

07-04-2017

मैं तो केवल इस फ़िज़ां में

निर्मल सिद्धू

हर किसी की धड़कनों में
बज रहा इक साज़ हूँ
जो समझ ना आ सके
कुछ मैं वही तो राज़ हूँ।

कोई मुझको झूठ बोले
कोई कहता सच मुझे
मैं तो केवल इस फ़िज़ां
में तैरती आवाज़ हूँ।

वो जो मौसम की नज़र
से डर रहा था हर घड़ी
मैं उसी बेबस परिन्दे
की नई परवाज़ हूँ।

सब भले कल भूल जायें
गुज़री कहानी जान कर
मैं नये क़िरदार में आ
फिर नया आग़ाज़ हूँ।

मैं मुहब्बत के फ़रिश्तों
की इबादत में लगा
ना किसी से है अदावत
ना कोई हमराज़ हूँ।

मैं यहाँ हूँ, मैं अभी हूँ,
तुमने देखा ही नहीं
इसलिये तो तुझसे
‘निर्मल’ मैं बड़ा नाराज़ हूँ।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

अनूदित कविता
कविता
कविता - हाइकु
नज़्म
ग़ज़ल
गीत-नवगीत
लघुकथा
विडियो
ऑडियो