मैं फौज़ी बोल रहा हूँ

01-07-2020

मैं फौज़ी बोल रहा हूँ

कौस्तुभ मिश्रा  (अंक: 159, जुलाई प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

घर द्वार सब कुछ छोड़ मैं 
चला शिखर की ओर मैं 
सीना ताने हूँ खड़ा 
दुश्मनों के सामने।


मेरा भी एक परिवार है 
मेरे भी सभी त्यौहार हैं 
पर कर्तव्य और देश पर 
ये सभी क़ुर्बान हैं।


अपनी माटी की आन में 
लड़ गया इसी अभिमान में 
तिरंगे के सम्मान में 
हुआ हूँ अब बलिदान मैं।


रण ख़त्म हों और शांति हो 
जयघोष हों और क्रांति हो
व्यर्थ ना हो बलिदान ये 
विदेशी चीज़ों का त्याग कर 
स्वदेशी का सम्मान हो।

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