मैं परिंदा हूँ!

15-03-2021

मैं परिंदा हूँ!

मनोहर कुमार सिंह (अंक: 177, मार्च द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

मैं परिंदा हूँ!
आसमान का
नहीं मेरा कोई
ठौर ठिकाना
नहीं पता मुझे
मैं चला हूँ कहाँ से
नहीं पता मुझे
जाना है कहाँ
आज़ाद हूँ मैं
मेरा क्या है?
आज यहाँ हूँ
तो कल वहाँ
नित नए ठिकाने
बनाता हूँ मैं
फिरता रहता हूँ
इधर-उधर जहाँ-तहाँ।

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