मैं मिलूँगा तुम्हें

15-07-2021

मैं मिलूँगा तुम्हें

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 185, जुलाई द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

सुनो! घबराना मत तुम
घर की इन दीवारों में जीवित हूँ मैं।
कभी आईने के सामने
हो जाना खड़े और देखना ख़ुद को
मैं नज़र आऊँगा।
 
किताब के हर पन्ने पर जीवित हूँ मैं।
विद्यालय के कक्षों में . . . व्याख्यानों में
ब्लैक बोर्ड पर लिखे शब्दों में
कक्षा में बैठे हर छात्र की
आँखों में झाँकना
तुम मुझे पाओगे हँसते हुए।
 
जीवित हूँ मैं तुम्हारे आँगन की फुलवारी में।
तुलसी के पौधे में ध्यान से
देखना मेरे अक्स।
वसंत के फूलों में देखना
जीवित मिलूँगा मैं तुम्हें।
 
मैं जीवित हूँ तुम्हारी माँ की आँखों में।
उसकी उन चूड़ियों में जो उसने
सहेज कर रखी हैं अपने बक्से में।
जीवित हूँ मैं राघव में . . . 
मेरी छवि देखना तुम
बिट्टू और किट्टू में . . . 
जीवित मिलूँगा तुम्हें।
 
जब भी ऊँचा उठोगे . . . मुस्कराओगे।
उस मुस्कराहट में जीवित मिलूँगा तुम्हें।
असफलता अपमान के आँसू
जब भी गिरेंगे तुम्हारी आँखों से
देखना प्रतिबिम्ब मेरा उन आँसुओं में।
जीवित मिलूँगा तुम्हें।
 
कर्तव्य पथ पर डगमगाने लगो।
या ज़िंदगी के झँझावातों में
उलझ जाओ घबराना नहीं
जीवित मिलूँगा तुम्हें, 
तुम्हारा हाथ थामे हुए।

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