मैं एक कवि बनना चाहता हूँ

15-08-2021

मैं एक कवि बनना चाहता हूँ

सतीश ’निर्दोष' (अंक: 187, अगस्त द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

मैं एक कवि बनना चाहता हूँ!
टूटी फूटी दो चार
लाइनों को जोड़कर
विसर्ग, मात्राओं की
परवाह किए बग़ैर
कोई नई, आधुनिक पद्धति की
कविताएँ रचना चाहता हूँ।
मैं एक कवि बनना चाहता हूँ॥
 
चिड़ियों के चहचहाने
झरनों के बहने
मूक खड़े पर्वतों के कुछ कहने
से लेकर हल चलाते किसान
उसके बैल और
निर्जीव समझे जाने वाले
हल तक पर लिखना चाहता हूँ।
मैं एक कवि बनना चाहता हूँ॥
 
कश्मीर की
मुरझाई हुई मासूमियत
डरे, सहमे हुए चेहरों
विधवाओं के सूख चुके आँसू
अपने ही देश में
शरणार्थियों की तरह रहते
कश्मीरी पंडितों से लेकर
दहशत की आग फैलाते
उन वहशी दरिंदो 
तक पर लिखना चाहता हूँ।
मैं एक कवि बनना चाहता हूँ॥
 
आज सम्पूर्ण
मानवता पर छाई इस
महामारी की गर्दिश
हर रोज़ लगते लाशों के ढेर 
अपने सामने 
अपनों को यूँ
बिछड़ते देखने की बेबसी
से लेकर मदद को बढ़ते हाथ
और अब भी लूटने वालों
तक पर लिखना चाहता हूँ।
मैं एक कवि बनना चाहता हूँ॥

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