मैडम एम

15-04-2021

मैडम एम

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 179, अप्रैल द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

"चलिए मैडम उठिए पुस्तकालय बंद होने का समय हो गया।" पुस्तकालय संचालक ने उस महिला से ज़ोर से कहा।

महिला ने आजू-बाजू देखा सब सीटें ख़ाली थीं वह हड़बड़ा के उठी और चल दी।

प्रतिदिन शाम को 6 बजे वह महिला पुस्तकालय आती और पुस्तकालय से जाने वाली वह अंतिम व्यक्ति होती।

पिछले आठ दिन से पुस्तकालय संचालक उसका बहुत बारीक़ी से निरीक्षण कर रहे थे।

रजिस्टर में एंट्री के समय वह सिर्फ़ मिसेज एम लिखती थीं।

एक दिन ख़ाली समय देख कर पुस्तकालय संचालक ने मैडम एम से पूछा, "अगर आपको बुरा न लगे तो एक बात पूछना चाहता हूँ।"

मैडम एम चौक पड़ी लेकिन फिर सम्भल कर मुस्कुराई बोली, "पूछिये।"

"लगता है आपको पुस्तकें पढ़ना बहुत अच्छा लगता है," संचालक ने मुस्कुराते हुए कहा।

"जी मेरी बचपन की आदत है," मैडम एम का अभी भी पूरा ध्यान पुस्तक पर ही था।

"मतलब आप बचपन से ही किताबी कीड़ा रही हैं," संचालक ने चुटकी ली।

"जी,"मैडम एम खिलखिला कर हँस पड़ी चारों तरफ़ जैसे संगीत बज उठा। "बात उन दिनों की है जब हम स्कूल छात्र थे हमारे शहर में उस क्षेत्र के सबसे पुराने पुस्तकालयों में से एक श्री सार्वजनिक पुस्तकालय में प्रतिदिन शाम 6 बजे से आठ बजे तक नियमित अध्ययन हेतु मैं और मेरा भाई जाते थे," मैडम एम ने पहली बार इतनी बातें वो भी पुस्तकालय से सम्बंधित की तो संचालक महोदय की भी उत्सुकता जगी।

"उस समय तो शायद सभी लोग पढ़ने के लिए पुस्तकालय ही जाते होंगे," संचालक महोदय ने उत्सुकता पूर्वक पूछा।

"हाँ वाक़ई हम लोगों का कार्ड भी बना था जिससे हम लोग घर लाकर पुस्तकें पढ़ते थे। उसके बाद सागर विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी हमारा आशियाना बनी।"

मैडम एम अपनी जवानी के दिनों में खो गईं।

संचालक महोदय को लगा कि मैडम वाक़ई में अध्ययनशील महिला हैं। उन्होंने मैडम की अध्ययनशीलता की गहराई जानने के लिए पूछा, "आपकी ज़िंदगी में किताबों की क्या अहमियत है?"

"कुछ किताबें ज़िंदगी बदल देती हैं, कुछ किताबें ज़िंदगी आसान कर देती हैं और कुछ किताबें ज़िंदगी ही बन जाती हैं," मैडम एम का उत्तर सुनकर संचालक आश्चर्यचकित रह गया।

उत्सुकता पूर्वक संचालक ने पूछा, "आपकी प्रिय पुस्तकें कौन-कौन सी हैं?"

"वैसे तो आप देख रहे हैं मुझे सभी पुस्तकें पढ़ना पसंद हैं पर मेरी सबसे प्रिय पुस्तकें श्री लाल शुक्ल की ’राग दरबारी’, धर्मवीर भारती की  प्रेम की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ’गुनाहों का देवता’ एवम्‌ तुलसी की ’रामचरित मानस’ हैं इन किताबों से जीवन की सम्वेदनाओं को जीना सीखा  साथ-साथ उस समय के समाज की हलचल, गतिविधियाँ, देश, दुनिया की बेहतर और गहरी जानकारी मिली। सच कहूँ तो इन  किताबों ने मेरी पढ़ने और साहित्य में रुचि बढ़ा दी थी।"

संचालक आवाक था वह मैडम एम से अत्यधिक प्रभावित था।

संचालक ने मैडम एम से पूछा, "आजकल सोशल मीडिया के इस युग में किताबें क्या उतनी ही महत्वपूर्ण बनी हुई हैं जितनी हमारे बाल्यकाल में थीं।"

"बिल्कुल किताबों का महत्व हर युग में हमेशा रहा है और रहेगा। हाँ, इतना अंतर ज़रूर है कि पहले किताबें खोजनी पड़ती थीं; ख़रीदनी पड़ती थीं, अब एक क्लिक पर हमारे सामने होती हैं। पर मुझे तो प्रिंट बुक्स पढ़ने में ही आनंद आता है," मैडम एम ने सोशल मीडिया पर अपने विचार रखते हुए कहा।

"आप क्या साहित्यकार हैं?" संचालक अभिभूत था।

"आपको क्या लगता है?" मैडम एम ने प्रतिप्रश्न करते हुए कहा।

"सौ प्रतिशत मुझे विश्वास है कि आप साहित्यकार हैं किंतु एक प्रश्न है आज के सोशल मीडिया के साहित्य पर आपके क्या विचार हैं?" संचालक ने बहुत उत्सुक होकर पूछा।

"सोशल मीडिया एक अच्छा मंच है साहित्य के लिए पर मुझे गुरेज़ है तो बस सोशल मीडिया के उस साहित्य से जिसमें 80 प्रतिशत कॉपी पेस्ट और कचरा बिखरा पड़ा है पर क्या करें पढ़ना तो पड़ेगा ही," मैडम एम ने अपने बैग से कुछ किताबें निकाल कर संचालक के सम्मुख रख दीं।

"मैडम ये किताबें?" संचालक ने प्रश्नवाचक दृष्टि से मैडम एम की ओर देखा।

"ये पन्द्रह साहित्यिक कृतियाँ मैंने लिखीं हैं। मैं इन्हें आपके इस पुस्तकालय को भेंट स्वरूप देना चाहती हूँ," मैडम एम ने उन किताबों का पैकेट संचालक को थमाया।

संचालक ने बारी-बारी से उन किताबों को देखा फिर उत्सुकता पूर्वक अपने रजिस्टर में उनकी एंट्री करने लगा।

सब चले गए तब संचालक को ख़्याल आया कि मैंने उन महोदया का नाम तो पूछा ही नहीं चलो उनकी किताबों में ही देख लेते हैं।

लेकिन किताबों में भी वही मैडम एम ही अंकित था।

उस दिन के बाद मैडम एम उस पुस्तकालय में कभी नहीं दिखीं।

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