शुचि चरण रज माता पिता की,
भाल पर अवलेप कर।
प्रभु की शरण रहते हुए ,
कर्तव्य पूरे शेष कर।
हे! मनुज दिग्भर्मित मत हो,
यह भव हरण का पंथ है।
माता पिता की चरण सेवा ,
जो करे बस वही सच्चा सन्त है
इसके बिना तो व्यर्थ सारे ,
दान जप तप मंत्र हैं।
माता पिता के रूप में ,
परमात्मा का तंत्र है।