मारी

डॉ. जमुना कृष्णराज (अंक: 176, मार्च प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

मारी हमारे घर में कई सालों पहले नियुक्त एक दस साल की छोटी सहायक थी जो मेरी नवजात शिशु की देखभाल करने में मेरी मदद कर सकती थी। उसकी माँ गुज़र चुकी थी और मज़दूर बने उसके पिता को उसे घर में अकेले छोड़ काम पर जाना मुश्किल महसूस हो रहा था, सो जब उन्हें मालूम पड़ा कि हम एक सहायक की खोज में हैं तो उन्होंने दिन भर हमारे यहाँ छोड़ने का निश्चय किया ताकि आम के आम, गुठली के दाम भी मिलें! 

मेरी बच्ची के लिए जो ढेर सारे खिलौने भेंट में आए, उनसे मारी रोती बच्ची का मन बहलाती और चुप कराती। उसे स्कूल जाने या शिक्षा ग्रहण करने की कोई इच्छा न थी, फिर भी मैं उसे फ़ुर्सत के समय कुछ पढ़ाने-सिखाने की कोशिश करती ताकि उसके लिए काला अक्षर भैंस बराबर न हो!

संयोगवश मेरे देवर की शादी तय हुई थी और हम सब शादी की सारी तैयारियाँ करने में व्यस्त थे। ऐसे समय में मारी ख़ूब काम आई। उसके रहते अपनी बच्ची को अकेले छोड़ काम में व्यस्त होने की नौबत कदापि न आती और मैं आराम से अपना सारा काम कर पाती। शादी के लिए सब के नए कपड़े ख़रीदे गए और मारी को भी उसकी ड्रेस पसंद आयी। 

ऐन मौक़े पर हम सब अपने नये कपड़े पहनकर मंडप को दूल्हे सहित वैन में प्रस्थान हुए। मंडप पहुँचते ही हम सब इतने व्यस्त हो गए कि किसी को भूख-प्यास की याद तक न आई। देर रात तक सब जगे रहे और बैंड-बाजे की आवाज़ के साथ-साथ सारी रस्में चल रही थीं। अगले दिन प्रातःकाल शुभमुहूर्त था जिसका सब बड़े बेताबी से इंतज़ार कर रहे थे। सुबह के नौ बजे तक जब शुभमुहूर्त संपन्न हो चुका था तो तब जाकर सबने चैन की साँस ली। मेरी बच्ची को हर कोई पहली बार देख रहा था, और मैं पाती कि वह किसी न किसी रिश्तेदार की गोदी में होती और वे बड़े प्यार से उससे खेल रहे होते। 

अचानक मुझे मारी की याद आई। मैंने पाया कि मेरी बच्ची के साथ हमेशा पायी जाती मारी काफ़ी समय से कहीं नहीं दिख रही थी। इतने बड़े मंडप में उसे ढूँढ़ना भी मुश्किल था। इसलिए मैं हर किसी से पूछने लगी कि यदि उन्होंने मारी को देखा पर हर किसी ने ‘नहीं’ का जवाब ही दिया। अब मुझे चिंता सताने लगी कि आख़िर मारी कहाँ गई होगी! किसी दूर के रिश्तेदार ने सलाह दी कि हम पुलिस को सूचित करें। पर हम बात का बतंगड़ नहीं बनाना चाहते थे और हमें इससे परहेज़ था। फिर भी हमने उसे ढूँढ़ने की पुरज़ोर कोशिश की। मंडप के मैनेजर और उनके सेवकों की सहायता से हमने मंडप का चप्पा-चप्पा ढूँढ़ा और आख़िर हमारी मेहनत सफल हुई। एक कर्मचारी ने पाया कि मारी एक खाट के नीचे सारी हलचलों से अनभिज्ञ आराम से ऊँघ रही थी। जब उसे जगाया गया तो वह ऐसे उठी जैसे उसे किसी ने उसकी गहरी नींद को भंग कर दिया हो! चार-पाँच तनावपूर्ण घंटों के बाद जब हमें सूचना मिली कि मारी मिल गई है तो हमारी जान में जान आई। आख़िर पुलिस की चक्कर में पड़ने की नौबत न आई और भगवान की कृपा से इन सारे झंझटों से बच गए। 

रात भर हमारे संग ही जगी रही मारी जैसी छोटी बच्ची का थक जाना स्वाभाविक था, अतः उसे किसी ने भी डाँटना ठीक न समझा। जब हमने उसे सारी कहानी बताई तो वह बड़ी मासूमियत से ख़ूब हँसने लगी। उसे सब कुछ मज़ाक लग रहा था! 

मेरी बेटी बड़ी हो गई और स्थितियाँ बदली तो मारी अपने घर चली गई। पर मारी की यह घटना हमारे लिए चिरस्मरणीय बन गई। 

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