माँ तुम जीवन का सार हो

01-10-2020

माँ तुम जीवन का सार हो

डॉ. शिवांगी श्रीवास्तव (अंक: 166, अक्टूबर प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

माँ तुम जीवन का सार हो
मैं थी ख़ाली स्लेट सी
गीली मिट्टी की गुड़िया 
तुमने कभी सिखाकर 
कभी समझकर 
कभी प्यार से गले लगाकर 
जीवन के कई पाठ पढ़ाए। 
 
माँ तुम मायके का सुख हो 
तुम्हारे होने से कभी कोई 
कमी नहीं रही 
तुमने अपने आँचल में 
हमारे सारे दर्द समेट लिए 
तक़लीफ़ में हमारा संबल 
दुख में हमारा साथ जो 
माँ तुम जीवन का सार हो 
 
माँ तुम जीने की आस हो 
कभी हँसकर कभी कसकर 
तुमने रिश्तों को बाँधे रखा है 
हम चाहे कितने ही दूर हो
तुमने हर धागा पिरोकर रखा है 
आँखों की भीगे कोरों 
से लिपटी प्रेम की मज़बूत 
बिसात हो 
माँ तुम जीवन का सार हो 
 
माँ तुम खाने का स्वाद हो 
तुम जैसा खाना कोई और 
कभी बना ही नहीं सकता 
बच्चों के मन का तुम 
अनोखा संवाद हो 
जैसे ही कहीं जाती हो 
कुछ खो जाता हो मानो 
माँ तुम ज़िंदगी की बुनियाद हो 
माँ तुम जीवन का सार हो 

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