माँ (नवल पाल प्रभाकर)
नवल पाल प्रभाकरबहती आँखें
छलकता आँचल
माँ का कलेजा
स्वच्छ सुकोमल।
ले आँखों में अधूरे सपने
पालती नन्हे शिशु को अपने
कर कमलों को देकर पीड़ा
बनाती जीवन को मधुबन।
माँ का कलेजा
स्वच्छ सुकोमल।
कर नज़र अंदाज़ देती
छोटी चाहे बड़ी हो ग़लती
जीवन अपना देती पिघला
और देती सोने को मखमल।
माँ का कलेजा
स्वच्छ सुकोमल।
बड़ा होकर जब वह शिशु
बन जाता असुरों का गुरू
कर देता माँ का हृदय विदीर्ण
नहीं लगाता है पल भर।
माँ का कलेजा
स्वच्छ सुकोमल।