माँ का आँचल!

01-07-2021

माँ का आँचल!

कविता झा (अंक: 184, जुलाई प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

एक आँचल का सहारा उबार देता,
हर दुःख को भगा जीवन सँवार देता।
उस आँचल में है कुंजी सभी सुख की,
संस्कार-प्यार से जीवन निखार देता।
 
जब हार मान थक जाती,
निराश हो अश्रु बहाती,
नाकाम हो हताश हो जाती,
तब एक आँचल की छाँव,
बचा लेता मेरा अस्तित्व,
सँभाल लेती मुझे मेरी माँ।
 
जब पग उठते ग़लत राह पर,
या लड़खड़ाते रहते मेरे क़दम,
रुक जाते यूँ ही अनायास,
तब संस्कार की गठरी उठाए,
दिखाकर ज्ञान भरा सत्मार्ग,
सँभाल लेती मुझे मेरी माँ।
 
जब दुनिया त्रुटि निकालती,
अंधकार हर तरफ़ से घेरता,
अपने भी साथ छोड़ जाते,
तब अकेलेपन को भाँप,
अनेक रिश्तों का भाव लिए,
सँभाल लेती मुझे मेरी माँ।
 
जब ज़िंदगी जीने का मौक़ा ना दे,
मौत हर वक़्त नज़दीक आती दिखे,
जीने की आस का क़त्ल हो जाए,
तब साहस की मशाल जलाए,
नव ऊर्जा की बूटी लिए,
सँभाल लेती मुझे मेरी माँ।
 
जब दुनिया चहुँ ओर से ठुकराए,
ईश्वर जीवन लेने को आतुर हो जाए,
तन-मन शिथिल हो पराजित हो जाए,
तब भगवान से बेधड़क भिड़ जाए,
हिम्मत की तलवार हस्तों में लिए,
सँभाल लेती मुझे मेरी माँ।
 
मेरी माँ के आँचल में सुकून धरा का सारा,
मैं नादान, ढूँढ़ा जो इधर- उधर कहाँ सहारा।
जिनके चरणों तले मेरी सारी दुनिया,
मेरी आदर्श, मेरी आराध्य मेरी माँ।
 

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