माँ (डॉ. मोहन सिंह यादव)
डॉ. मोहन सिंह यादवअख़बार बेचने वाला दस वर्षीय बालक एक मकान को गेट बजा रहा था। मालकिन ने बाहर आकर पूछा, "क्या है?"
बालक ने उत्तर में पूछा, "आंटी जी क्या मैं आपका गार्डेन साफ़ कर दूँ?"
मालकिन ने टालते हुए कहा, "नहीं, हमें नहीं करवाना है, और आज अख़बार नहीं लाया?"
बालक ने हाथ जोड़ते हुए दयनीय स्वर में कहा, " प्लीज़ आंटी जी करा लीजिए न, अच्छे से साफ़ करूँगा। आज अख़बार नहीं छपा, कल छुट्टी थी दशहरे की।"
मालकिन द्रवित हो गई, " अच्छा ठीक है, कितने पैसे लेगा?"
बालक ने झेंपते हुए कहा, "पैसा नहीं आंटी जी, खाना दे देना।"
मालकिन हैरान हुई, "ओह! आ जाओ अच्छे से काम करना।" .. लगता है बेचारा भूखा है, पहले खाना दे देती हूँ ..मालकिन बुदबुदायी।
मालकिन ने लड़के को पुकारा, "ऐ लड़के पहले खाना खा ले, फिर काम करना।"
बालक ने सिर झुका कर कहा, "नहीं आंटी जी, पहले काम कर लूँ फिर आप खाना दे देना।"
"ठीक है," कहकर मालकिन अपने काम में लग गयी।
एक घंटे बाद बालक ने मालिकन को बुलाकर कहा, "आंटी जी देख लीजिए, सफ़ाई अच्छे से हुई कि नहीं।"
मालकिन लड़के का काम देखकर बहुत ख़ुश हुई, "अरे वाह! तूने तो बहुत बढ़िया सफ़ाई की है, गमले भी क़रीने से जमा दिए। यहाँ बैठ, मैं खाना लाती हूँ।"
जैसे ही मालकिन ने उसे खाना दिया, बालक जेब से पन्नी निकाल कर उसमें खाना रखने लगा।
मालकिन मुस्कुराई, "भूखे! काम किया है,अब खाना तो यहीं बैठ कर खा ले। ज़रूरत होगी तो और दे दूँगी।"
बालक ने झेंपते हुए कहा, "नहीं आंटी, मेरी बीमार माँ घर पर है, सरकारी अस्पताल से दवा तो मिल गयी है, पर डॉ. साहब ने कहा है कि दवा खाली पेट नहीं खानी है।"
यह सुनकर मालकिन की पलकें गीली हो गईं.. । उसने अपने हाथों से मासूम को उसकी दूसरी माँ बनकर खाना खिलाया फिर उसकी माँ के लिए रोटियाँ बनाई और साथ उसके घर जाकर उसकी माँ को रोटियाँ दे आयी। तथा आते-आते कह कर आयी- "बहन आप बहुत अमीर हो जो दौलत आपने अपने बेटे को दी है वो हम अपने बच्चों को नहीं दे पाते हैं।"
माँ अपने बेटे की तरफ़ डबडबाई आँखों से देखे जा रही थी.. बेटा बीमार माँ से लिपट गया।