लिंक बनाए राखिए . . .

01-10-2021

लिंक बनाए राखिए . . .

डॉ. अशोक गौतम (अंक: 190, अक्टूबर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

सुबह-सुबह उनके एक पर एक चार मिस्ड कॉल आए, एक पर एक तो लगा बंधु को शायद ख़ासा ही स्वार्थ आन पड़ा है। वर्ना बिन स्वार्थ के तो आज कोई अपने सगे मामा को भी मामा नहीं बोलता, मुझ जैसे गधे को तो छोड़िए।

पाँचवीं बार उनकी कॉल आई तो मैंने अबके उनकी कॉल अटेंड कर ही ली नेचर कॉल स्थगित कर, "कहो बंधु, कैसे धड़ाधड़ याद कर रहे हो?"

"दोस्त! असल में बात ये है कि महीना पहले जो ज़्यादा खाकर मेरा कुत्ता मर गया था, उसका नगर निगम से डेथ सर्टिफ़िकेट लेना था। पर जितनी बार भी संबंधित साहब के पास उसका डेथ सर्टिफ़िकेट लेने गया, तो उसने हर बार कोई न कोई सच्चा बहाना बनाकर टरका दिया। कल फिर गया तो वह तुनकते बोला, ‘देखो दोस्त! अभी चार महीने के पेंडिंग कुत्तों के मालिकों के डेथ सर्टिफ़िकेट इश्यू करने को पड़े हैं और एक तुम हो कि महीना पहले मरे कुत्ते का डेथ सर्टिफ़िकेट बनाने को कह रहे हो? आदमी के डेथ सर्टिफ़िकेटों से ज़रूरी कुत्तों के डेथ सर्टिफ़िकेट कब से हो गए? ये आदमियों का नगर निगम है, कुत्तों का नहीं। यार! हद होती है बेशर्मी की भी। आदमी होकर कुत्तों के लिए सेंसेटिव हो जा रहे हो?’ सच कहूँ, अब तो कुत्ते का डेथ सर्टिफ़िकेट बनवाने जाते ऐसे लग रहा है जैसे उसका नहीं, मैं अपना डेथ सर्टिफ़िकेट बनावाने जा रहा होऊँ। 

"तुम तो जानते हो आज की तारीख़ में बिन लिंक-शिंक के कहीं बात नहीं बनती। पर मेरे वहाँ किसीसे लिंक नहीं। होते तो सुबह सुबह तुम्हें तंग न करता। बस, इसीलिए फोन पर फोन कर रहा था कि जो नगर निगम में तुम्हारे किसीसे लिंक-शिंक हो तो मैं सीधा उसके पास जा कुत्ते के जीव को इस नगर निगम से विदा करवाऊँ। वो बार-बार कह रहा है कि यमराज उससे उसका डेथ प्रमाणपत्र पूछ रहे हैं। वे कह रहे हैं कि जब तक वह अपना डेथ सर्टिफ़िकेट प्रोडूस नहीं करेगा, तब तक उसे उनके रिकॉर्ड में मरा नहीं माना जाएगा। वह अपने को मरा मानता हो तो मानता रहे।"

"है तो सही पर . . ." आगे मैं कुछ कहने को रुका तो वे ताना सा देते बोले, "रुक क्यों गए? अपने लिंक अपने डेथ सर्टिफ़िकेट के लिए सँभाल कर रखना चाहते हो तो साफ़-साफ़ कह दो। मैं किसी और का दरवाज़ा खटखटाता हूँ।’

"नहीं, ऐसी बात नहीं। पर . . ."

"तो गले में ये क्या फँस रहा है जो खुलकर कहने नहीं दे रहा?"

"वहाँ मेरे लिंक हैं तो सही, पर सच कहूँ तो वहाँ मेरे डायरेक्ट लिंक नहीं। थ्रू-थ्रू वाले लिंक हैं। और तुम तो जानते ही हो कि ये थ्रू-थ्रू वाले लिंक इतने विश्वसनीय नहीं होते, जितने डायरेक्ट वाले होते हैं।"

"तो इसका मतलब ये लूँ कि मेरा कुत्ता ज़िंदा-जी तो चैन से जी न सका, पर मरने के बाद भी चैन से अपने को मरा न समझ सकेगा?" वे बहुत उदास हुए तो मैंने अपना ख़ास लिंक उनके लिए यूज़ करने को मन फ़ाइनली बना ही लिया। क्या पता, कल मुझे भी इनके लिंक यूज़ करने की ज़रूरत कहीं पड़ ही जाए? जबसे आदमी, आदमी हुआ है, तबसे आदमी, आदमी के उतना काम नहीं आता, जितने ये लिंक काम आते हैं। सच पूछो तो ये धरती शेषनाग के फन पर नहीं, लिंक के फन पर ही टिकी है। सच पूछो तो ये धरती बैल के सींग पर नहीं, लिंक के सींग पर ही टिकी है। सच पूछो तो ये धरती धर्म पर नहीं, लिंक पर ही टिकी है। रोटी के बिना आदमी जी सकता है पर लिंकों के बिना नहीं। समझदार आदमी इसीलिए लिंकों की महत्ता को समझते हुए लिंक बनाए बचाए रखने के लिए क्या-क्या नहीं करते फिरते? उन्हें पता है कि हट-फिर कर जो कोई काम आएगा तो अपना कमाया धर्म नहीं, लिंक ही काम आएगा है। ज़िंदगी से पहले भी जो कुछ था, तो लिंक ही था। ज़िंदगी में भी जो कुछ है, बस, लिंक ही है। और ज़िंदगी के बाद भी जो कुछ रहेगा, तो बस, लिंक ही रहेगा। 

देने वाले जीव उत्पत्ति के जो सिद्धांत देते रहें, सो देते रहें। पर इस धरती पर जीवन का आधार लिंक ही है। वह चाहे जिसके बीच में रहा हो। जो ये लिंक न होता तो धरती पर मैं न होता । जो ये लिंक न होता तो धरती पर आप न होते। जो ये लिंक न होता तो न वे प्रोफ़ेसर होते, न वे वीसी। जो ये लिंक न होता न इन्हें पुरस्कार मिलता, न वे सचिव न होने के बाद भी अकादमी के सचिव होते। ये लिंक डीलिंक ही हैं जो गधे को राजा तो शेर को उसका पीउन बना देते हैं। ये लिंक ही हैं जो बलात्कार करने के बाद भी बलात्कारी को सज़ा देने के बदले सम्मान दिलवाते हैं। तब ज्ञान और ईमान की सारी की सारी हेकड़ी धरा पर धरी की धरी रह जाती है। यह जो हम सब अपने आसपास होता घटता एक दूसरे को गालियाँ देते देख रहे हैं न! वह सब लिंक की ही माया है। यहाँ भगवान से मिलने तक को लिंक ढूँढ़ना पड़ता है। तब जाकर कहीं भगवान के सरलता से दर्शन हो पाते हैं। वर्ना चार-चार दिन लगे रहो हाथ में सवा दस रुपए लिए लाइन में भगवान की जय जयकार करते, कभी इस टाँग तो कभी उस टाँग खड़े होते, आगे वालों को धक्का देते, पीछे वालों से धक्का खाते, मुँह का थूक सुखाते। 

अपने को विद्वानों का विद्वान कहने वाले चाहे वेद चार मानें, पर मैं पिताजी के लिंकों के चलते सब पेपरों में फेल होने के बाद भी दस फ़र्स्ट डिवीजन में करने वाला, वेद चार नहीं, पाँच मानता हूँ। और उनमें सबसे ऊपर लिंक वेद को रखता हूँ। इस वेद के बिना शेष चारों वेद शून्य हैं। इसके बिना जीवन शून्य है। इसके बिना सृष्टि शून्य है। इस सृष्टि को जो कोई युगों-युगों से गतिमान बनाए है, तो वह है लिंक। इसलिए मज़े से जीना है तो सब कुछ छोड़ बस—

लिंक बनाए राखिए, बिन लिंक सब सून। 
लिंक बिना न उबरै, मानुस- खोत्ता जून।

 

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