लहरें

राजीव कुमार (अंक: 168, नवम्बर प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

जब वो सागर तट पर पहुँचा तो लहरों का आना-जाना अपनी चरम सीमा पर था। चट्टनों पर हो गए छेद और उन पड़ गई दरारें, लहरों कि शक्ति को बयान कर रहे थे।

मनोज कुछ देर पत्थर पर बैठकर समुद्र की लहरों को देखता रहा और मन में उठ रही लहर से पछाड़ खाता रहा, वो लहर जो अब तड़प और प्रेम पथ पर अकेला हो जाने से हिलोरें भर रही थी और आत्महत्या की स्थिति तक ले आई थीं।

समुद्र में उतर कर मनोज आगे बढ़ने की कोशिश करता और हार जाता, और उसके मन की लहरें फिर उसको उकसा देतीं। समुद्र की लहरों और आत्महत्या को उकसा रही मन की लहरों में महा-मुक़ाबला होता रहा।

अंत में समुद्र तक उतरने में सफल हुआ, लेकिन उसके मन की लहरों का प्रयास अब भी ब-दस्तूर जारी था।

समुद्र की लहरों के थपेड़ों ने मनोज को बहुत दूर तक रेत में पटक कर उसकी कमर और पैर में चोट पहुँचा दी थी। अब उसके मन से आत्महत्या को उकसा रही लहरें किनारा कर चुकी थीं।
 

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