लड़ेगा जो रहेगा वही ज़िन्दा

09-06-2009

लड़ेगा जो रहेगा वही ज़िन्दा

ज्ञान्ती सिंह

वर्ष २००३ सितम्बर का महीना था, कालोनी का विकास हो इस पर ज़ोर-शोर से बातचीत चल रही थी। सभी तकबे के लोग चर्चा में हिस्सा ले रहे थे। बुज़ुर्गों की संख्या ज़्यादा थी, नौजवान भी अपनी राय रख रहे थे। लोकतंत्र था; सभी अपना-अपना पक्ष रख रहे थे। कोई कह रहा था निगम पार्षद के चला जाये, कोई कह रहा था मेरी जान-पहचान अच्छी है, सब लोग विधायक के पास चलते हैं, उन्हीं से सलाह लेते हैं कि क्या करना चाहिए। निरंजन ने तुरंत वफ़ादारी दिखाते हुए कहा, "कहो तो भाई सांसद को अपने घर बुला लेता हूँ, उनसे कही जाएगी। क्या विचार है आप सबका, क्या कहते हैं आप लोग?"

"हाँ -हाँ क्यों नहीं, यह ठीक रहेगा," सभी चाहते थे, कि उनका कुछ खर्च ना हो, लेकिन बात कौन करेगा, इस पर सबकी बोलती बंद हो गई। कोई भी कालोनी का प्रवक्ता बनाने को तैयार नहीं था। प्रमोद श्रीवास्तव ने कहना प्रारम्भ किया, "मेरी नज़र में एक इंसान है जो अच्छा बोलता है, पढ़ा लिखा है, सामाजिक व्यक्ति है, सभी का भला चाहता है। आप लोग कहो तो उसे बुला लेता हूँ।"

"हाँ -हाँ क्यों नहीं," सभी चाहते थे कि उन्हें कुछ न करना पड़े, न ही कहीं जाना पड़े। संसार में लड़ाई बहुत कम लोग लड़ते हैं, क्योंकि उन्हें हमेशा पराजित होने का डर सताता है। ख़ैर सभी के कहने पर सुधीर सिंह को बुलाया गया, सभी लोगों ने उनका स्वागत किया।

सारी बात सुनाने के बाद सुधीर सिंह ने जो कुछ कहा उनके सभी मुरीद हो गए। उन्होंने कहना शुरू किया, "आज के समय में एक आदमी की कौन सुनता है। सामने वाले को जब यह ज्ञात हो जाता कि जो उससे मिलने आया है वह कहाँ से आया है, क्यों आया है, किसने भेजा है? तब नाप-तौल कर बोलता है। तो हममें से उस एक आदमी का चुनाव कर लीजिये जो जाकर हम लोगों के लिए बात कर सके।" फिर क्या था सभी को लगा कि सुधीर सिंह से योग्य व्यक्ति कौन होगा। सो सबने एक स्वर में कहा कि सुधीर सिंह को वार्ता के लिए भेजा जाये, तब सुधीर सिंह ने कहा, "नहीं ऐसे नहीं पहले हम एक समिति का गठन कर लें जिसके बैनर तले सभी मिल-जुल कर प्रयास करेंगे।"

इस पर सभी ने सहमति जताई, आनन-फानन में समिति का निर्माण कर लिया गया। सर्वसम्मति से किरण सिंह को अध्यक्ष तथा प्रमोद श्रीवास्तव को उपाध्यक्ष बना लिया गया, सचिव के रूप में सुधीर सिंह को चुन लिया गया। समिति का नाम रखा गया रिहायशी वेलफेयर सामुदायिक समिति हर्ष विहार, दिल्ली -९३।

पहला पत्र तैयार किया गया। निगम पार्षद के पास पहला पत्र भेजने का प्रस्ताव सर्वसम्मिति से तय हुआ। सुधीर सिंह को निगम पार्षद के पास भेजा गया कि वे कॉलोनी की सड़क बनवा दें। निगम पार्षद ने तब कहा कि क्या मुझसे पूछकर कॉलोनी में बसे हो? संत स्वभाव का परिचय देते हुए सिंह ने कहा, "नहीं जी आपसे पूछकर नहीं बसे पर वोट ज़रूर आपको दिया है। आप हमारा पत्र लें मैं अब चलता हूँ, कहकर सुधीर वापस दिए। वापस आकर सारी बात अध्यक्ष को बतायी। सभी निगम पार्षद के व्यवहार से कुपित हुए। विधायक वीर सिंह धींगान को जब सब ज्ञात हुआ तो समिति तथा कालोनी के विकास के लिए उसने कोई कोर-कसर बाकी ना रखने की सभी के सामने अपनी बात कही।
बाद में विधायक ने उसी रात बताया की अगले दिन सचिवालय में मीटिंग है, दहाड़ कर अपना हक़ माँगना है। ज़रूरत पड़ने पर हमें भी कुछ सुना देना, पर खडन्जा की जगह पक्की सड़क ले कर रहना। अगले दिन सतीश त्यागी, पवन सिंघल के साथ सुधीर सिंह सभी सचिवालय गए। जम कर बहस-बहस में सुधीर सिंह ने हिस्सा लिया। बात से जब कोई रास्ता निकालता नहीं नज़र आया तब सुधीर सिंह ने कहा, "मंत्री जी आप हमारे यहाँ का सड़क पक्की क्यों नहीं बनवाना चाहते हैं?"

मंत्री जी का जवाब था पैसा नहीं है।

"आप काम शुरू करवाइये पैसा कॉलोनी वाले देंगे, काम पड़ता हो तो आप अपने फंड से पैसा दें, संसद महोदय दें, विधायक जी दें, क्यों विधायक जी पैसा देंगे न?"

मंत्री हैरान वे सांसद, विधायक का मुँह देखने लगे।

"हाँ -हाँ क्यों नहीं देंगे न," मंत्री जी ने कहा, "फिर भी इतना पैसा नहीं इकट्ठा होगा कि पक्की सड़क बन जाये।"

"तो हम पैसा कॉलोनी से इकट्ठा कर के देंगे, पर बनेगी सड़क पक्की ही।"

"भाई मान लो फिर भी अगर इतना पैसा हो नहीं पाया तो?"

"मंत्री जी आप हमारी कालोनी को दिलशाद गार्डन कॉलोनी से कम क्यों आंकते हो? हम भी जिगर रखते हैं, जैसे वोट जमकर देते हैं वैसे ही पैसा उगाह कर देंगे। आप हामी तो भरो।""फिर भी अगर…………"

"अगर-वगर छोड़िये मंत्री जी साफ-सुथरी बताइये पक्की सड़क या नहीं?"

"धमकी दे रहे हो क्या?"

"नहीं जी पूछ रहे हैं।"

"मैं अगर न कहूँ तो?"

"तो फिर हमारी भी सुन लीजिये मंत्री जी, ज़मीन खरीद कर जैसे हमने अपना घर बनाया है, वैसे ही सड़क पक्की वाली बना लेंगे, लेकिन यह भी जान लीजिये सरकार को कोई विकास शुल्क नहीं देंगे।"

"अरे, विधायक जी आपके इलाके वाले तो धमकी दे रहे हैं भाई।"

"हाँ ये लोग परेशान हैं न।"

"अच्छा भाई सुधीर जी सरकार सड़क पक्की बनाएगी, अब तो खुश हो जाइए।"

"ठीक है जी, लीजिये खुश हो गए," सुधीर सिंह हाथ आगे बढ़ाया और दोनों ने हाथ मिलाया। उपस्थित सभी लोग ताली बजायी। R.W.A की जीत पर सबसे अधिक विधायक ख़ुश हुए नज़र आये। शहरी विकास मंत्री ने पूछा कि सुधीर जी आप कहाँ के रहने वाले हो, कहीं …वहाँ से तो नहीं हो?

उन्हें संदेह था की शायद बिहार से सुधीर सिंह हैं। पर जब उन्हें विधायक ने बताया कि सुधीर सिंह बंगाल से हैं, तब उन्होंने कहा, "तभी तो मैं कह रहा था कि वहाँ का रहने वाला ही इस बेख़ौफ़ अंदाज़ में बात कर सकता है।"

वे बड़े ख़ुश हुए, अंत में उन्होंने २५ लाख का काम ७५ लाख में स्वीकार किया और संस्था को कहा कि वे अपनी यानी R.W.A की निगरानी में सड़क का निर्माण कराएँ। फिर क्या था वो सड़क बनी कि आज भी लोग संस्था की, सुधीर सिंह की प्रशंसा करते नहीं थकते हैं। संस्था की आवाज़ बन गए सुधीर सिंह। उनकी पूछ होने लगी, अध्यक्ष से यह सब न देखा गया। मौका देखकर उन्होंने भरी सभा में सुधीर सिंह को "बिहारी" कहकर सम्बोधित किया। बगावत हो गयी, काफी लोंगों ने एतराज उठाया कि क्षेत्रवाद बातें संस्था में नहीं होनी चाहिएँ, जाति, धर्म से जोड़ कर कोई भी बात सभा में संस्था में नहीं होनी चाहिए।

पर कुछ लोग यह चाहते थे कि सुधीर सिंह की पूछ समाज में घटे। लोगों ने मिलकर षडयंत्र किया, फिर भी सफलता नहीं मिली। कॉलोनी का विकास चाहने वालों ने तब फैसला लिया और किरण सिंह की जगह अशोक कुमार को संस्था का अध्यक्ष बना दिया सभी ने मिल जुल कर कार्य ज़ारी रखा। आज सुधीर सिंह सचिव से महासचिव बन गए हैं। समिति ने काफी तरक्की की। सभी कालोनी वालों ने भी मन ही की एकजुटता से सभी काम किये जा सकने का भरोसा जताया। आज कॉलोनी में बिजली, सड़क तथा पानी सभी कुछ है।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

स्मृति लेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में