लाजवाब

15-06-2021

लाजवाब

सुभाष चन्द्र लखेड़ा (अंक: 183, जून द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

नवंबर 2019 का वाक़या है। सान होजे, कैलिफ़ोर्निया में आयोजित एक दावत में हम दो दर्जन हिंदुस्तानियों के बीच वह अकेला अमेरिकी था।

नितिन उसका मित्र था और हम सबको नितिन ने अपने जन्मदिन की दावत में बुलाया था।

ख़ैर, तभी एक मित्र ने कहीं सुना हुआ एक चुटकुला सुनाया। एक बार कोई अपनी पत्नी को हिंदी फ़िल्म ‘रांझणा‘ दिखाने ले गया। जब वे फ़िल्म देखकर घर लौट रहे थे तो उसकी पत्नी रास्ते  में प्यार से बोली, “ओ मेरे रांझणा, आज तुम बर्तन माँजणा।”

यह सुनते ही हम सबने ठहाका लगाया तो उस प्रौढ़ अमेरिकी ने मेरी तरफ़ सवालिया नज़रों से देखा। मैंने उसकी जिज्ञासा का समाधान करने के लिए जब उसे इस चुटकुले को अंग्रेज़ी में सुनाया तो उसने हँसने के बजाय मेरे से अंग्रेज़ी में अगला सवाल किया, “लेकिन आप सब इतना क्यों हँसे?“

मैं चुप रहा क्योंकि मेरी समझ में नहीं आया कि मैं उसे अब क्या जवाब दूँ? दरअसल, हम भारतीयों के विपरीत एक मूल अमेरिकी के लिए पति का बर्तन माँजना एक सामान्य बात है।    
 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता - हाइकु
स्मृति लेख
लघुकथा
चिन्तन
आप-बीती
सांस्कृतिक कथा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
व्यक्ति चित्र
कविता-मुक्तक
साहित्यिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में