क्या ज़रूरी किसी की चाह करो
बलजीत सिंह 'बेनाम'क्या ज़रूरी किसी की चाह करो
ज़िन्दगानी में कुछ गुनाह करो
अपने हिस्से की गर ख़ुशी न मिले
उम्र भर और को तबाह करो
इस सदी का यही तो नारा है
जो भी करना है ख़्वामखाह करो
दिल की दुनिया को छोड़ने वालो
तुम भी ग़म से कभी निबाह करो
मेरी आँखों को अब नहीं आदत
आँसुओं और कोई राह करो
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