क्या करूँ कोई मुझे जमता नहीं

15-09-2020

क्या करूँ कोई मुझे जमता नहीं

कु. सुरेश सांगवान 'सरू’ (अंक: 164, सितम्बर द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

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क्या करूँ कोई मुझे जमता नहीं
और तू भी तो मिरा अपना नहीं
 
जा तुझे आज़ाद मैंने कर दिया 
फिर न कहना बाँधना अच्छा नहीं 
 
देखने भर की यहाँ हैं महफ़िलें
कारवाँ में जो है क्या तन्हा नहीं 
 
आपकी मरज़ी है जो चाहें कहें
मैं कभी इतना हुआ सस्ता नहीं
 
काम ही कुछ इश्क़ जैसा हो गया 
किस ज़बाँ पर अब मिरा चर्चा नहीं
 
ज़िंदगी की आज तुमको है क़सम
मौत से पहले कभी मरना नहीं
 
इक समंदर आँख में भी रख लिया
रोज़ तो रहती यहाँ बरखा नहीं

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